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से पीड़ित हो--वह दोनों ही तरह की समृद्धि प्राप्त करे। अभी-अभी मन में कुछ भाव जगे और उन्होंने शब्दों का रूप ले लिया, वे इस प्रकार है
"ज्योति-पर्व पर, ज्योतिर्मय हो, जीवन का, कण-कण क्षण-क्षण । विघ्न जाल से मुक्त सर्वथा, हो मंगल का नित्य वरण॥"
ज्योति-पर्व के उपलक्ष्य में हमारे जीवन का जो भी कण-कण, क्षण-क्षण आ रहा है, वह ज्योतिर्मय हो जाए, प्रकाश-रूप हो जाए। मार्ग में आने वाली जितनी बाधाएँ हैं, रुकावटें हैं, वे दूर हों। जीवन मंगलमय, आनन्दमय बन जाए। अंदर का अंधकार, बाहर का अंधकार, जो है वह मिट जाए। हमारा धर्म भी सून्दर हो और कर्म भी सुन्दर हो। धर्म, कर्म से अनुप्राणित हो और कर्म, धर्म से अनुप्राणित हो। निष्क्रिय धर्म और धर्म से शून्य कर्म जीवन को सड़ा देता है, मलिन बना देता है। इसलिए कर्म को धर्म से ज्योति मिले और धर्म को कर्म से गति मिले। जैसे दीपावली के हजारों-लाखों दीप जगमगाकर बाहर के अंधकार को नष्ट कर देते हैं, उसी प्रकार हमारा अन्तर्मन भी ज्ञान-ज्योति से जगमगा जाए। इन्हीं भावनाओं के साथ, मैं प्रभु महावीर और गुरु गौतम की स्मृति में आप सबके आध्यात्मिक विकास के लिए अनंत शुभ कामनाएँ करता हूँ और इसी मंगलभावना के साथ विराम लेता हूँ
"अन्दर का, बाहर का जो भी, अंधकार सब मिट जाए। धर्म-कर्म की युगल ज्योति से, जन-मन जगमग हो जाए॥"
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सागर, नौका और नाविक
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