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________________ जिसके लिए हजार बार 'हाँ' कहा हो, प्रसंग उपस्थित होने पर उसके लिए 'ना' भी कह सके। जिसे जीवन की यथायोग्य परिस्थितियों का समयोचित ज्ञान नहीं है और जिसे अपने बोध पर दृढ विश्वास नहीं है, वह गुरु नहीं बन सकता, वह धर्म-कथा करने का भी अधिकारी नहीं है। बाह्य विधि-निषेधों की एक ही बात को पकड़कर बैठने वाला गुरु कैसे बन सकता है ? कर्म-काण्ड गधे की पूंछ नहीं है कि मूर्ख ने पकड़ ली एक बार तो पकड़ ली, अब कौन छोड़े उसे ? धर्म-कथा को समझना आवश्यक है। भगवान महावीर कहते हैं कि पहले वाचना करो, स्वाध्याय करो, अध्ययन करो। यदि तत्त्व की कोई बात समझ में नहीं आई है, तो उसे पूछो, एक बार ही पूछकर मौन मत धारण कर लो, यदि बात समझ में नहीं आ रही है, तो बार-बार पूछो और उस अध्ययन किए हुए विषय को वार-बार दुहराओ। फिर उसमें गहरे उतरो, उस पर चिन्तन-मनन करो। इस प्रकार किया गया अध्ययन परिपक्व हो जाएगा, ज्ञान की ज्योति अनावृत होगी, तब एक दिन का शिष्य गुरु बनता है, धर्मकथा का व्याख्याता होता है। इसका यह मतलब नही कि आचार्य या अन्य कोई पद किसी-न-किसी तंत्र से ले लिया या दे दिया और बस बन गये गुरु । वस्तुतः गुरु बनाया नहीं जाता, वह तो एक ज्योति है, जो अंदर से प्रस्फुटित होती है। जब वह ज्ञान की धारा अंदर से प्रस्फुटित हो कर प्रवहमान होती है, तब पूर्ववद्ध कर्मों की निर्जरा होती है, वह कार्मणवर्गगा के अनंत अनंत पुद्गलों को आत्म-प्रदेशों से हटा देती है। आगमों में कहा है और तत्त्वार्य सूत्रकार आचार्य उमास्वाति ने भी कहा है कि सुनने वाला श्रोता उस धर्मकथा से कुछ ग्रहण करता है या नहीं, यह प्रश्न मुख्य नहीं है ? यह सब तो उसके अपने क्षयोपशम पर निर्भर है। अतः इस ओर देखने की और सोचने की आवश्यकता ही नहीं है । जनहित एवं जन-कल्याण की पवित्र भावना से दिए गए उपदेश से धर्म - कथा करने वाले प्रवक्ता को तो धर्म ही होता है। यदि प्रवक्ता चिन्तन-मननपूर्वक जनता के हित की भावना से बोलता है, तो उसके अशुभ कर्मों की निर्जरा ही होती है। कहने का अभिप्राय है कि जिस विषय पर बोल रहे हो, उस विषय का पूरा ज्ञान होना चाहिये। ऐसा नहीं कि जो मन में आया वह फेंक दिया, जैसे अंधेरे में आँख बन्द कर पत्थर फेंक दिया । वह लक्ष्य की ओर जा रहा है या नहीं, इसका यदि कोई भान नहीं है, तो फिर फेंकने का क्या अर्थ है ? अतः गुरु को अपने पद का एवं अपने अधिकारों का भान होना चाहिए। वह जो कुछ कहे वह विश्वासपूर्वक कहे । आचार्य उदयन ने जो न्याय का सूर्य माना जाता है, आत्म-विश्वास के सन्दर्भ में कभी कहा था उन्होंने "वयमिह पदवियां तर्कमान्विक्षिकों वा, यदि पथि विषये वा वर्तयामः स पन्थाः । उदयति दिशि यस्यां भानुमान् सेव पूर्वा न हि तरणिरुदीते दिक्-पराधीनवृत्तिः ॥" Jain Education International यदि पद विज्ञान के स्वरूप को, उसके भाव को समझना हो तो देखो कि उदयन क्या कह रहा है। यदि तर्क के द्वारा समाधान नहीं हो रहा है, मन में संदेह बना हुआ है और उसके सही प्रमाण को जानना है, तो इसके लिए तुम देखो कि उदयन क्या कह रहा है। जिस पथ पर चल रहे हो या चलना चाहते हो वह पथ सही है या गलत है, वह पथ है या कुपथ है--इसका यथार्थ निर्णय करना है, तो देखो, उदयन किस पथ पर गतिशील है । उदयन जिस पथ पर चल रहा है, वही पथ सुपथ है । बाहर में साधारण लोगों की नजरों में भले ही वह कुपथ दिखाई देता है, परन्तु अपने शुद्ध विवेक से निर्णय करके जिस पथ पर हम खड़े हैं या चल रहे हैं, वही पथ है । उदयन एक महत्वपूर्ण बात कहता है-सूर्य जिस दिशा में उदित होता है, वही पूर्व दिशा है। यह कहना सही नहीं है कि सूर्य पूर्व में उदित होता है । वह पूर्व दिशा के अधीन नहीं है। उसके उदय होने के आधार पर ही पूर्व दिशा बनी है। अतः उदयन कहता है कि गुरु वह है, जो विश्वास के साथ कह सके कि जिस दिशा में में खड़ा हूँ, वही सही दिशा है । यह गर्वोक्ति नहीं, अपने स्वरूप बोध का दृढ़ विश्वास है । हम क्या हैं ? हम कहाँ हैं? हमारा साधना - पथ कैसा है ? यह निर्धूम ज्ञान - ज्योति जब प्रज्वलित होती है, तब कहीं गुरुत्व आता है और धर्म - कथा का सतत प्रवाह सही दिशा में प्रवहमान होता है ? ऐसे गुरु से ही शिष्य को सही रास्ते की जानकारी मिलती है । यदि स्वयं गुरु ही अंधेरे में है, तो शिष्य को वह क्या प्रकाश देगा ? संस्कृत-साहित्य में एक प्रहसन है, उसमें एक चुटीला गहरा व्यंग किया गया है कि एक आँखों के वैद्य थे । वे आँखों के चिकित्सक थे, नेत्र विशेषज्ञ (Eye Specialist)। एक आँख का रोगी आया और उसने कहा कि वैद्यजी, मुझे कम दिखाई देता है । १७४ सागर, नौका और नाविक ―― For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001329
Book TitleSagar Nauka aur Navik
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherVeerayatan
Publication Year2000
Total Pages294
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size7 MB
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