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हंस लो स्वयं हंसा लो पर को, अमर-प्रेम-मणि-दीप जला लो। अन्तर के सत्-सरस-धार से, जग-मरुथल सोंचो लहरा दो।
विश्व-भाव में हृदय मिला लो, स्वात्म-भाव से जगत् खिला लो। वही 'अहम्' का स्वर फूटेगा-- मानव, मन-सागर लहरा लो!
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