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गो० कर्मकाण्डे
ई अपूर्व्वकरणननाकुं मोहनीयोदयकूटंगळोळु षण्नोकषायंगळ कर्लदोडे अनिवृत्तिकरणन प्रथमभागयोळोदे कूटमकुमदक्के संदृष्टि १११ ई कूटदो वेदत्रयमं कळेदोर्ड अनिवृत्तिय
११११
द्वितीयभागदोळोदे कूटमक्कु ११११ मल्लि संज्वलनक्रोधर हितमागि तृतीय भागदोळों दु कूटमक्कु १११ मिल्लि संज्वलन मान कषायमं कळेदोडे चतुर्थभागदोळु अनिवृत्तिकरणंगो दे कूटमक्कु ११ ५ मिल्लि संज्वलनमार्ययं कळेदोड निवृत्तिकरणन पंचमभागदोल संज्वलनबादरलोभप्रकृति कूटमोदयक्कुं १ । सूक्ष्मसांपरायंगे सूक्ष्मलोभोदयप्रकृतियों देयक्कुं १ ॥
७२०
२०
अनंतरं मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळं असंयताद्यप्रमत्तसंयतांतमाद चतुर्गुणस्थानवत्तगळुपशमक्षायिक सम्यग्दृष्टिगळोळं मोहनीयोदयविशेषमं पेदपरु |
अणसंजोजिदसम्म मिच्छं पत्ते ण आवलित्ति अणं ।
उवसमखयिए सम्मं ण हि तत्थवि चारि ठाणाणि ॥ ४७८ ||
अनंतानुबंधिवि संयोजित सम्यग्दृष्टौ मिथ्यात्वं प्राप्ते न आवलिपर्यंत मनंतानुबंधि । उपशमक्षायिके सम्यक्त्वं न हि तत्रापि चत्वारि स्थानानि ॥
अनंतानुबंधिकषायचतुष्टयमनसंयतादिचतुर्गुणस्थानवत्तगळु
वेदक सम्यग्दृष्टिगळ बिसंयोजिसि मिथ्यात्वकम्र्मोदयदिदं असंयतदेशसंयतप्रमत्तगुणस्थानवत्तगळु मिथ्यादृष्टिगुणस्थानम १५ पोवदुतं विरला मिथ्यादृष्टिगुणस्थानमं पोदि प्रथमसमयं मोबल्गोड अनंतानुबंधिकषाय
इतीमानि चत्वारि चत्वारि मिथ्यादृष्ट्याद्यपूर्वकरणांतमेव नियमेन । अत्र षष्णोकषायेष्वनिवृत्तिकरणप्रथमभागे एकं कूटं १ १ १ अत्र वेदत्रयेऽपनीते तद्वितीयभागे १ १ १ १ पुनः संज्वलनक्रोधेऽपनीते तृतीय११११
भागे १११ मानेऽपनीते चतुर्थभागे ११ मायायामपनीतायां पंचमभागे बादरलोभः १ सूक्ष्मसां पराये सूक्ष्मलोभः १ ।।४७७॥ अथ मिध्यादृष्टावसंयतादिचतुर्षु संभवद्विशेषमाह -
अनंतानुबंधिविसंयोजितवेदकसम्यग्दृष्टौ मिध्यात्व कर्मोदयान्मिथ्यादृष्टिगुणस्थानं प्राप्ते आवलिपर्यंतमनं
इस तरह मिथ्यादृष्टिसे लेकर अपूर्वकरण पर्यन्त नियमसे चार-चार कूट हैं । अपूर्व - करणमें हास्यादि छहकी व्युच्छित्ति होती है । अतः अनिवृत्तिकरणके प्रथम भाग में चार संज्वलन कषायों में से एक कषाय और तीन वेदों में से एक वेदके उदयरूप एक ही कूट है । इनमें से वेदके घटनेपर दूसरे भाग में चार संज्वलन कषायों में से एकके उदयरूप एक ही २५ कूट है । इनमें से क्रोधको घटानेपर तीसरे भाग में तीन संज्वलन कषायोंमें से एकके उदद्यरूप एक ही कूट है। इनमें से मानको घटानेपर चौथे भाग में दो संज्वलन कषायों में से एकके उदयरूप एक ही कूट है। इनमें से मायाको घटानेपर पाँचवें भाग में बादर संज्वलन लोभके उदयरूप एक ही कूट है । सूक्ष्मसाम्पराय में सूक्ष्म लोभके उदयरूप एक ही कूट है ||४७७|| आगे मिध्यादृष्टि तथा असंयत आदि चार गुणस्थानों में कुछ विशेष कथन है, वह
३० कहते हैं
अनन्तानुबन्धीका विसंयोजन करनेवाला वेदक सम्यग्दृष्टी मिध्यात्व कर्मके उदयसे यदि मिथ्यादृष्टि गुणस्थान में आता है तो उसके एक आवली काल तक अनन्तानुबन्धीका
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