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सम्पादकीय
कर्णाटवृत्तिके रचयिता केशववर्णीने अपनी टोकाके अन्तमें कुछ कन्नड़ पद्य भी दिये हैं। मूडविद्रीके श्री चारुकीर्तिजी महाराजने अपने शोधसंस्थानके विद्वान द्वारा उनका शोधनपूर्वक हिन्दी अर्थ कराकर भेजा इसके लिए हम स्वामीजी तथा उक्त विद्वानका आभार स्वीकार करते है।
मेरी यह आन्तरिक भावना थी कि श्रवणवेलगोलामें महामस्तकाभिषेकके अवसरपर इस ग्रन्थराजका विमोचन हो । भारतीय ज्ञानपीठके वर्तमान अध्यक्ष साह श्रेयांसप्रसादजी आदिने भी मेरी इस भावनाको मान्य किया और ता. १. फरवरीको चामुण्डराय मण्डपमें विशाल मुनि संघ और जनसमुदायके समक्ष इस प्रन्थराजका विमोचन हुआ। यह मेरे लिये बड़े हर्ष की बात हुई।
श्रवणवेलगोलासे लौटते हुए बाहुबली ( कुम्भोज ) में आवार्य समन्तभद्रजी महाराजके दर्शन किये । उन्हींके समक्ष इस ग्रन्थराजके प्रकाशनको योजना बनी थी और उसे भारतीय ज्ञानपीठके तत्कालीन अध्यक्ष साह शान्तिप्रसादजी तथा मन्त्री बाबू लक्ष्मीचन्द जीने स्वीकार किया था। उन्हीं के शुभाशीर्वादसे यह महान् कार्य निर्विघ्न पूर्ण हुआ है। अतः उनके प्रति मैं नतमस्तक है।
अन्तमें मैं भारतीय ज्ञानपीठके संचालक मण्डल तथा व्यवस्थापक मण्डलको तथा सन्मति मुद्रणालयके संचालकों और सुदक्ष कम्पोजीटर श्री महावीरजीको धन्यवाद देता हूँ जिनके सहयोगसे यह महान् कार्य निर्विघ्न पूर्ण हो सका।
स्व. साहू शान्तिप्रसादजी और उनकी स्व. धर्मपत्नी रमारानीजीका स्मरण बरबस हो आता है जो इस ज्ञानपीठके संस्थापक और संचालक रहे हैं और जिसके कारण जिनवाणीके महत्त्वपूर्ण ग्रन्थोंका प्रकाशन हो रहा है। साहूजोके बड़े भाई साहू श्रेयांसप्रसादजी तथा बड़े पुत्र साहू अशोककुमारजी उनके कार्यको संलग्नता के साथ कर रहे हैं यह सन्तोषकी बात है।
श्री गोम्मटेश्वर सहस्राब्दी महामस्तकाभिषेक
दिवस २२ फरवरी सन् १९८१
-कैलाशचन्द्र शास्त्री
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