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________________ कर्णावृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका बंघमक्कुमपुर्दारवमवस्थितबंधमेय व कुमल्पतरबंधविशेषं संभविसदु । केळगे मिथ्यादृष्टियप्पनल्लवे सासादननागन कारणमागि मिश्रंगल्पतरबंधविशेषं शून्यर्म बुदु सिद्धमक्कु ॥ असंयतनोळल्पतरंगळार । ६ । देशसंयतनोळे रडप्पुवु । २। प्रमत्त संयतनोळमेरर्डयल्पत रंगळवु । २ । शून्यक्कु र्व्वकरणनोळु ओ वेयल्पतरबंधविशेषमक्कु । स्थूलनोळ पंचकादिस्थानंगळगेकै काल्पतरं गळप्पुवंतिमबोल अल्पतरशून्यमक्कुमिदवर्क संदृष्टि : 59 역 भं मि | २२ २२२२ १७ १७१३ ६ ६ ६ २ २ २ Jain Education International १७१३ ९ १३ ९९ २ २ १ २ १ १ | १२ १२ ६ ४ २ २ अ । अनि ९९ ५ ४ ३ २ १ १ १ १ १ १ २ १ ५ ४ ३ १ १ १ १ १ १ ७११ ई पंचचत्वारिंशदल्पतरबंधंगळ स्वरूपनिरूपणं गय्यल्पडुगुमवे ते दोर्ड मिथ्यादृष्टिजी वं षट्प्रकार द्वाविंशतिप्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तलुं द्विप्रकार सप्तदशप्रकृतिस्थानम मिश्रनागि मेणसंयतनागि कट्टुत्तं विरलु द्वादशभंगंगळवु । १२ । मत्तमा मिथ्यादृष्टि षट्प्रकार द्वाविंशतिप्रकृति स्थानमं कट्टुत्तं देशसंयतनागि द्विप्रकारत्रयोदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोर्ड द्वादशाल्पतरबंधभेदगळegg | १२ ॥ मत्तमा मिथ्यादृष्टि षट्प्रकारद्वाविंशति प्रकृतिस्थानमं कट्टुत्तलुमप्रमत्तनागि १० एक प्रकार नव प्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडल्पतरबंधविकल्पंगळार ६ । वितु मिथ्यादृष्टिगल्पतरबंगळु मूवत ३० । वज्जं अपमत्तं तं समल्लियइ मिच्छो' इति नियमात्, सासादनस्य पतनशीलत्वात् मिथ्यादृष्टावेव गमनादेकविंशतिकस्य भुजाकारा एव नाल्पतरमिति शून्यं । मिश्रस्यासंयते गमने बंघस्यावस्थितत्वान्मिथ्यादृष्टौ च गमने भुजाकारत्वादन्यत्रागमनाच्च सप्तदशकस्य नाल्पतरोऽस्तीति शून्यं । असंयते द्विधासप्तदशकस्य देशसंयतद्विघा १५ त्रयोदशकेन चत्वारः, अप्रमत्तैकभंगनवकेन च द्वाविति षट् । देशसंयते द्विघात्रयोदशकस्याप्रमत्तं कधानवकेन मिथ्यादृष्टि जीव सासादन और प्रमत्त गुणस्थानोंको छोड़ अप्रमत्त तक जाता है अतः सासादनके चार प्रकारवाले इक्कीसके बन्धकी अपेक्षा और प्रमत्तके दो प्रकारवाले नौके बन्धकी अपेक्षा अल्पतर बन्ध नहीं कहे । तथा सासादनसे गिर मिध्यादृष्टी ही होता है । इससे इक्कीसके बन्धके भुजकार बन्ध तो सम्भव हैं किन्तु ऊपर नहीं चढ़ता, इससे अल्पतरका अभाव है । इसीसे सासादनमें शून्य कहा है । ५ For Private & Personal Use Only मिश्र से गिरे तो मिथ्यादृष्टि ही होता है अतः वहाँ भुजकार बन्ध ही होता है और ऊपर चढ़े तो असंयत में जाता है । वहाँ भी मिश्रकी ही तरह सतरहका बन्ध है । इससे मिश्र में अल्पतर बन्ध न होनेसे शून्य कहा है । असंयत में दो प्रकारसे सतरहका बन्ध होता है | वहाँसे देशसंयत में जावे तो वहां दो प्रकारसे तेरहका बन्ध । अतः चार अल्पतर हुए । यदि अप्रमत्तमें जावे तो वहाँ एक प्रकारसे नौका बन्ध है । अतः दो अल्पतर हुए। इस तरह छह हुए । २५ क - ९० २० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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