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________________ गणितात्मक प्रणाली अन्तिम निषेककी सम्पूर्ण स्थितिबन्ध मात्र स्थिति होती है। यहाँ सत्त्वमें अनेक समयप्रबद्धोंके एक समयमें उदय आने योग्य अनेक निषेक मिलकर जितना हो उसे एक निषेक जानना चाहिए (पं. टोडरमलके अनुसार )। इनमें परमाणुओंका प्रमाण निकाला जा सकता है। सामान्यतः यदि एक प्रकृतिकी विवक्षा हो तो उसके पहले बँधे तथा बादमें बँधे समयप्रबद्धोंमें जिसके बहुत निषेक सत्तामें पाये जायें उस समयप्रबद्धके अन्तिम निषेककी जो स्थिति हो उस प्रमाण स्थितिमत्व होता है। यदि सर्व प्रकृतियोंकी विवक्षा हो तो जिस प्रकृतिके समयप्रबद्धके अन्तिम निषेककी बहत स्थिति हो, उसके अन्तिम निषेककी स्थिति प्रमाण स्थिति सत्त्व कहना चाहिए। उन अनेक समयोंमें बँधी जो प्रकृतियाँ हैं उनका जो अनुभाग अस्तित्व रूप है उसका नाम अनुभाग सत्व है । वहाँ एक समयमें उदय आने योग्य अनेक समयप्रबद्धोंके निषेक मिलकर सत्ता सम्बन्धी एक निषेकके परमाणुओंमें; अथवा अनेक समयप्रबधोंमें बंधे समयप्रबद्घोंके गलनेके पश्चात् अवशेष रहे उन सभी परमाणुओंमें पूर्वोक्त प्रकार अविभाग प्रतिच्छेद वर्ग वर्गणा, स्पर्धक रूप अनुभागका विशेष गणित ज्ञातव्य है । वहाँ परमाणुओंका प्रमाण भी पूर्वोक्त प्रकार लाना चाहिए । इसी प्रकार कर्मोंका अपने काल आये फल देने रूप खिरनेको सम्मुख होना उदय है, जो चार प्रकार है-प्रकृति उदय, प्रदेश उदय, स्थिति उदय तथा अनुभाग उदय । जिस समयप्रबद्धका एक भी निषेक नहीं गला हो उसका प्रथम निषेक उदयमें आता है। जिसका प्रथम निषेक पहले गला हो उसका द्वितीय निषेक वहाँ उदय होता है। इस क्रमसे जिसके दो निषेक अवशेष रहे उसका वहाँ उपान्त निषेक उदय होता है। जिसका एक निषेक अवशेष रहा हो उसका वही अन्तिम निषेक वहाँ उदयमें आता है। इस प्रकार सभी निषेक मिलकर एक समयप्रबद्ध मात्र परमाणुओंका उदय होता है। ___ अब विशेषता लिये हा विवरण उदीरणा आदिका निम्न रूपमें प्रस्तुत है-ऊपरके नीचेके अन्य समयोंमें उदय आने योग्य निषेकों के परमाणु, उस विवक्षित समयमें उदय आने योग्य निषेकोंमें मिलाया गया हो तो वे परमाणु भी उन्हींके साथ उसी समयमें उदयमें आते हैं। इसी प्रकार घटानेकी प्रक्रिया है। इसी प्रकार अनुभाग उदयका मिश्रप्रभाव सम्भद होता है । अपक्व पाचन, उदय कालको प्राप्त न हआ जो कर्म है उसका पाचन उदय कालमें प्राप्त करना उदीरणा है। वहां वर्तमान समयसे लगाकर आवली मात्र कालमें उदय आने योग्य जो निषेक हैं उनका नाम उदबावगे है। उसके ऊपरवर्ती निषेकोंको उदयावली बार कहते हैं। उदयावली बाह्यमें जो तिष्ठे हुए निषेक है उनके परमाणुओंको उदयावलीके निषेकोंमें मिलाते हैं। इस प्रकार बहुत कालमें उदय आनेवाले अपक्व निषेकोंको उदयावलीके निषेकोंके साथ ही उदय आने योग्य करना, वही पाचन जैसा कार्य जिस समय हो उसी समयमें उदीरणा कहलाती है। उसी समयमें वही द्रव्य सत्तारूप वा उदयरूप है। स्थिति, अनुभागका बढ़ना उत्कर्षण है । वहाँ स्तोककालमें उदय आने योग्य जो नीचेके निषेक, उनके परमाणु, बहुत कालमें उदय आने योग्य जो ऊपरके निषेकोंमें मिलें, तो इस प्रकार स्तोक स्थितिका बहुत स्थिति होनेका नाम स्थिति उस्कर्षण है । पुनः स्तोक अनुभाग युक्त जो नीचे के स्पर्धक, उनके परमाणु जब बहुत अनुभागवाले ऊपरके स्पर्धकोंमें मिलते है; तब स्तोक अनुभागका बहुत अनुभाग होनेका नाम अनुभाग उकर्षण होता है। इसी प्रकार अपकर्षणका विवरण है। गणितीय प्रक्रिया इस प्रकार है-यहाँ विवक्षित सर्व परमाणुओंके समूहको उत्कर्षण और अपकर्षण भागहार द्वारा विभाजित करनेपर, एक भाग मात्र परमाणुओंका ग्रहण कर उन्हें यथायोग्य नीचे अथवा ऊपर मिलाया जाता है। ये भागहार गुणसंक्रम भागहारसे असंख्यात गुणा और अधःप्रवृत्त संक्रम भागहारके असंख्यातवें भाग रूप पल्यके अर्वच्छेदोंके. असंख्यातवें भागमात्र जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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