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________________ गोम्मटसार ग्रन्थकी गणितात्मक प्रणाली षट्खण्डागम ग्रन्थ सम्भवतः ईसाकी दूसरी सदीमें आचार्य पुष्पदन्त एवं भूतबलिकी अद्भुत कृति है । इसमें से प्रथम पाँच खण्डोंपर नवीं सदीमें आचार्य वीरसेन द्वारा विशाल धवला नामक टीका रची गयी। छठा खण्ड महाधवलके नामसे भी विख्यात है और महाबन्ध कहलाता है । ग्यारहवीं सदीमें नेमिचन्द्राचार्यने इन ग्रन्थोंके गणितीय सार रूप गोम्मटसार जीवकाण्ड तथा कर्मकाण्ड रूपमें रचना की । इन्हीं ग्रन्थोंकी केशववर्णी कृत कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका विलक्षण प्रतीकोंसे भरी हुई है और गणितज्ञोंके लिए अभूतपूर्व सामग्री प्रदान करती है । इस टीकाके अतिरिक्त एक अपूर्ण टीका मन्दप्रबोधिका है और पण्डित टोडरमल कृत सम्यग्ज्ञानचन्द्रिका है । पण्डित टोडरमलने अन्तःप्रज्ञासे अनेक प्रतीकोंके अर्थ समझनेका प्रयास किया, तथा अर्थ दृष्टि अधिकार उक्त टीकाके अतिरिक्त निर्मित किया, जिसमें उन्होंने प्रायः प्रत्येक कठिन प्रतीकबद्ध पदको सरल वाक्यों या शब्दों द्वारा समझाया है । यह कार्य अठारहवीं सदीमें सम्पूर्ण किया गया । प्रस्तुत निबन्धमें पण्डित टोडरमलके अभिप्रायकी सिद्धिके लिए उन्हींकी रचनाके आधारपर लोकोत्तर प्रमाणकी गणितात्मक प्रणालीको सरलतापूर्वक समझाया गया है । आशा है कि इसके द्वारा न केवल शोधार्थी अपितु जिज्ञासु मुमुक्षु भी लाभान्वित हो सकेंगे । इसके साथ ही विभिन्न पारिभाषिक शब्दोंके लक्षणके पठन-पाठन हेतु यहाँ प्रायः सभी गणितीय परिभाषाएँ दे दी गयी हैं । संदृष्टियोंके प्रयोग भी निर्दिष्ट कर दिये गये हैं । इस प्रकार प्रारम्भिक रूप से लेकर आवश्यक गणितीय सामग्रीको समझाते हुए, शोधार्थी अथवा मुमुक्षुको लब्धिसारकी बड़ी टीकामें गति हेतु तैयारी कराने का भी अवसर प्राप्त हो सकेगा । ६१. भूमिका किसी भी गणितीय प्रणालीमें अध्ययनके पूर्व उसमें प्रविष्ट प्रतीकोंकी जानकारी आवश्यक है । गोम्मटसारादि ग्रन्थोंकी टीकाओंमें इस प्रणालीके सार संक्षेपरूप अध्ययन हेतु, साथ ही उन्हें स्मरण रखने हेतु प्रतीकमय सामग्री निर्मित की गयी, जो पूर्ववर्ती ग्रन्थोंमें उपलब्ध नहीं है । तिलोयपण्णत्ती जैसे ग्रन्थोंमें कुछ प्रतीकबद्ध सामग्री है और कुछ धवला टीका ग्रन्थोंमें भी उपलब्ध होती है । किन्तु विशाल पैमाने पर यह सामग्री अंक संदृष्टि, अर्थ संदृष्टि तथा रेखा संदृष्टि रूपमें केशववर्णीकी कर्णाटकीटीकामें दृष्टिगत होती है । इसी प्रकार लब्धिसार क्षपणासारकी टीकामें सम्भवतः माधवचन्द्र त्रैविद्य तथा ज्ञानभूषणके शिष्य नेमिचन्द्र ( १६ वीं सदी ) द्वारा जो संदृष्टि प्रयोग हुआ वह भी विलक्षण है और विशेषकर धर्मके मर्मको कर्मके गणित द्वारा प्रकट करता प्रतीत होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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