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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका श्रीसर्व्वज्ञसुबोधवज्रतलभाक् स्यात्कार तीरोदुरो गंभीरो वरनेमिचंद्र विसरद्वावचंद्रिकार्वाद्धितः । विस्तीर्णो गुणरत्नभूषणभरस्तारार्थपूर्णो महान्नित्यं गोम्मटसारसंज्ञितसुघां भोधिश्शिवायास्तु वः ॥ श्रीमद्धर्मसुधा समुद्र विजयोल्लासस्तमस्तोमभित् भास्वद्भव्य चकोरसम्मदकरः प्रध्वस्ततापोत्करः । प्रांचपंचसु संग्रह स्त्रिभुवनोद्योती सदानंदनो जीयाद्भासुरबोधमाधवबलश्री नेमिचंद्रोदयः ॥ गोम्मटसारवृत्तिर्हि नन्द्यान्द्रव्यैः प्रवर्तिता । शोषयन्त्वागमात् किञ्चित् विरुद्धं चेद् बहुश्रुताः ॥ १२ ॥ निर्ग्रन्थाचार्यवर्येण त्रैविद्यचक्रवर्तिना । संशोध्याभयचन्द्रेणा लेखि प्रथम पुस्तकः ||१३|| इत्याचार्यश्रीनेमिचन्द्रकृतायां गोम्मटसारापरनाम पञ्चसंग्रहवृत्ती कर्मरचना स्वभावो नाम नवमोऽध्यायः समाप्तः । Jain Education International १३९३ For Private & Personal Use Only ५ संस्कृत टीकाकारकी प्रशस्तिका आशय चौबीस तीर्थंकरों को नमस्कार करनेके पश्चात् टीकाकार कहते हैं- जिसमें रत्नत्रय के द्वारा पूज्य अर्हन्तपदको प्राप्त करके मोक्ष जाते हैं वह मूल संघ जयवन्त हो । उसके सरस्वती - १५ गच्छ में बलात्कारगण है । उसमें कुन्दकुन्द मुनीन्द्रका नन्दिसंघ है वह भी जयवन्त होओ। मैं अपने गुरु भट्टारक शिरोमणि ज्ञानभूषणको भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ । कर्णाट देश के मल्ल राजाकी भक्तिसे जिसने मुझे जिनागम पढ़ाया है उन मुनिचन्द्रको नमस्कार करता हूँ । जिनने धर्मवृद्धिके लिए मुझे सूरिपद दिया उन प्रभाचन्द्र भट्टारकको नमस्कार करता हूँ । विद्य विशालकीर्ति सूरिने इस टीकाके रचनेमें सहायता की और बड़े हर्षसे २० प्रथम उसे पढ़ा। यह टीका चित्रकूट में श्री पार्श्वनाथ जिनालय में धर्मचन्द्र सूरि अभयचन्द्र भट्टारक वर्णीलाला आदि भव्य जीवोंके लिए साधुसांग और सहेसकी प्रार्थनापर कर्णाटवृत्तिसे रची। १० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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