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________________ १३८९ १३८९ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका गोम्मटसुत्तं लिहणे गोम्मटरायेण जा कया देसी । सो राओ चिरकालं णामेण य वीरमत्तंडी ॥९७२॥ ई गोम्मटसारसूत्रलेखनदोळ गोम्मटरानिदमाउवोंदु देशीभाष माडल्पटुदा रायं नामदिदं वीरमातडं चिरकालं जयसुत्तिक्कें । [मत्तेभ विक्रीडित.वृत्त :] सुगम वालियनोवदिक्कलिपुटुं मेवप्रभागक्कयुं । नेगेदुल्लंघिपुदुं करं सुगममा लोकांतदाकाशमम् ॥ सुगम पोगि बेरल्गळि मिडिददं नोपदमावंददि । सुगमं तानिनितल्तु गोम्मटमहाशास्त्राब्धिपारंगमं ॥१॥ [कंद पद्य:] मण्णं पिडिदोडे कैयाळु मण्णुं पोन्नप्पुर्वन्न जेनतनक्क । बण्णहरियण्णनोदिन डोणेय घायक्के बेदरवण्णगळोळरे ॥२॥ १५ २० गोम्मटसूत्रलेखने गोम्मटराजेन या देशी भाषा कृता स राजा नाम्ना वीरमार्तण्डश्चिरकालं जयतु ॥९७२॥ संस्कृतटीकाकारप्रशस्ति श्रीवृषभोऽजितो भक्त्या शंभवोऽभिनन्दनः । सुमतिः पद्मभासः श्रीसुपार्श्वश्चन्द्रभः स्तुतः ॥१॥ सुविधिः शीतलः श्रेयान् सुपूज्यो विमलेश्वरः । अनन्तो धर्मनाथो नः शान्तिः कुन्थुररप्रभुः ॥२॥ गोम्मटसार ग्रन्थके लिखे जानेपर गोम्मटराज चामुण्डरायने जो देशी भाषामें टीका रची, जिसका नाम चामुण्डरायकी उपाधिपर वीरमार्तण्डी था, वह राजा चिरकाल तक जीवित रहे ।।९७२॥ सागरको बिना किसी कष्ट के पार करना, मेरु पर्वतके शिखरपर चढ़कर उसको पार करना, लोकान्त तक फैले हुए विशाल आकाशके अन्ततक पहुँचकर अपनी अंगुलियोंसे छूकर उसका अनुभव करना, ये सब काम सुलभ साध्य हैं । परन्तु गोम्मटसारके शास्त्र समुद्रको पार करना सुलभ नहीं ॥१॥ विशेषार्थ-प्रपंचमें जो दुःसाध्य कार्य हैं उन्हें चाहे हम कर सकेंगे, लेकिन २५ गोम्मटसारके सिद्धान्त सागरको पार करना असाध्य काम है। इन बातोंसे स्पष्ट है कि गोम्मटसारके अर्थ लगाने में, विवरण देने में पढ़नेवालेको जो पाण्डित्य और संस्कार चाहिए उसका दिग्दर्शन केशवण्णा दे रहा है। साथ ही वैसे संस्कारको मैंने प्राप्त किया है, ऐसे आत्मविश्वासकी ध्वनि भी यहाँ प्रतिध्वनित होती है ॥११॥ जैनागमकी प्रतिभाके कारण अगर मैं अपने हाथमें मिट्टी भी ले लूँ वह सोना बन .. जायेगी। विद्वान् केशवण्णकी विद्वत्ताको देखकर कौन ऐसा है जो डर न जाय ॥२॥ १. नाभेयमजितं देवं शम्भवं भवतारकम् । घातिकर्मप्रणाशाय प्रणमाम्यहमादरात् ॥१॥ अभिनन्दनमानन्दरूपं सुमतिमच्युतम् । पद्मप्रभ प्रभुं वन्दे रत्नत्रयविशुद्धये ॥२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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