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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१३७१ निषेकानुकृष्टिखंडंगळसंकलिसुत्तं विरलु लब्धं पूर्वोक्तमोहतीयकर्मजघन्यस्थितिप्रतिबद्धस्थितिबंधाध्यवसायस्थानंगळ प्रमाणमेयक्कुमदे ते दोर्ड पदहतमुखमाविधनं एंदितनुकृष्टिपददिदं प्रथमजघन्यानुकृष्टियं गुणिसिदोडावि घनमिनितक्कुं ३० पपप गुपप व्यकपदार्द्धघ्नचय
अगुगु ३ प गुणोगच्छ एंदित्तुत्तर धनमंतंदोडे इनितक्कु । = ० प प प प प मो उत्तरधनमुमनाविधनमुमं कूडिदोर्ड मूलधनमपतितमिनितक्कुं- ५. 3 aa a a a
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000
= ० ५५ प गु
ई प्रकारदिदं द्वितीयादिनिषेकंगनुकृष्टिखंडगळं मुन्न रचनेयोलु बरदत
अ daa गु गु३
रचियिमुत्तं पोगि प्रथमगुणहानिचरमनिषेकमिदरोळ = ० प प प गु २ पूवोक्तक्रमदिद
एतेषु पुनः संकलितेषु पूर्वोक्तमेव जघन्यस्थितिबन्धाध्यवसायप्रमाणमायाति । तद्यथा
पदहतमुखमादिधनं
पपप
व्येकपदार्घनचयगुणो गच्छ
tapa ३५
अ aaa गुगु
२०
उत्तरधनं = aपपप
तयोर्योगो मूलधनमपतितमेतावत : प प प गु १ - २ । अadaगु गु ३५
अaaa गु गु ३ २a एवं द्वितीयादिनिषेकाणामध्यनकृष्टिखण्डानि रचयित्वा प्रथमगुणहानिचरमनिषके : प प प ग २
अaaa गु गु ३
एक हीन गच्छके आधेको चयसे तथा गच्छसे गुणा करनेपर चयधन होता है। आदिधन और चयधनको मिलानेपर जघन्य स्थितिसम्बन्धी अध्यवसायोंके प्रमाणरूप सर्वधन होता है। इसी प्रकार द्वितीयादि निषेकोंमें अनुकृष्टिरचना क्रमसे करके प्रथम गुणहानिके अन्तके निषेक
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