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________________ ७०२ गो० कर्मकाण्डे येरडं कटुगुमिदो दु भुजाकारबंधमक्कुं। मत्तमा संज्वलनलोभमं कटुत्तिर्दु मरणमादोडे देवासंयतनागि पदिनेछु प्रकृतिस्थानमं कटुगुमिदो दु भुजाकारबंधमक्कुमितेरडु। मत्तमा संज्वलनलोभमायाद्वयमं कटुत्तिळिदनंतरसमयदो अवतरणद्वितीयभागदोळ संज्वलनलोभमायामान त्रयम कटुगुमिदों भुजाकारमा द्विबंधकंगे मरणामादोर्ड देवासंयतनागि पदिनेछु प्रकृति. ५ स्थानमं कटगुमिदोदु भुजाकारबंधमक्कुमंतु द्विबंधकनोळेरडु। मतमा संज्वलनलोभमायामान सहितमागि मूरं कटुत्तिद्दिळिदनिवृत्तिकरणावरणतृतीयचतुर्थभागोळु नाल्कुं संज्वलनकषायप्रकृतिस्थानमं कद्गुमिदोंदु भुजाकारबंधमक्कुमा त्रिबंधकंग मरणमादोडे देवासंयतनागिपदिने; कटुगुमिदोंदु भुजाकारबंधमक्कुमंतरडु। मत्तमवतरणचतुर्थभागवोळनिवृत्तिकरणं संज्वलनकषायचतुष्प्रकृतिस्थानमं कटुत्तिळिदु पंचमभागदोछु पुंवेदसहितमागि पंचप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडिदोंदु भुजाकारबंधमक्कुमा चतुष्कषायबंधकंगे चतुत्थंभागदोळु मरणमादोडे देवासंयतनागि पदिनेछु प्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडिवोदु भजाकारबंधमक्कुमंतु चतुष्कषायबंधकनोळरडु। मत्तमा पंचप्रकृतिस्थानबंधकानिवृत्तिकरणनिळिदु अपूर्वकरण गुणस्थानमं पोद्दिद प्रथमसमयदो नवप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडे इदोंदु भुजाकारबंधमक्कुमा पंचप्रकृतिस्थानबंधकानिवृत्तिकरणंग मरणमादोडे देवासंयतनागि सप्तदशप्रकृतिस्थानमं कट्टिदोडिदो दु भुजाकारबंधमाकुमंत रडप्पुवु । १५ पुनस्तच्चतुष्कं बघ्नन्नवतीर्याधस्तनभागे पुंवेदसहितं बध्नाति । वा देवासंयतो भूत्वा सप्तदश बध्नातीति चतुबंधके द्वौ । पुनस्तत्पंच बध्नन्नवतीर्यापूर्वकरणो भूत्वा हास्यरतिभयजुगुप्साचतुष्केण सह नवकं बध्नाति । वा देवासंयतो भूत्वा सप्तदश च बध्नातीति पंचबंधके द्वो। पुनः अपूर्वकरणोऽप्रमत्तः प्रमत्तो वा नवबंधक: क्रमेणावतीर्य देशसंयतो भत्वा त्रयोदश, वा देवासंयतो भत्वा सप्तदश, वा प्रथमोपशमसम्यक्त्वः भूत्वैकविंशति, वा वेदकसम्यक्त्वः स मिथ्यादृष्टिभूत्वा द्वाविंशतिं च बघ्नातीति नदबंधके चत्वारः । पुनः २० तत्त्रयोदशबंधकोऽसंयतो देवासंयतो वा भूत्वा सप्तदश वा प्रथमोपशमसम्यक्त्वः स सासादनो भूत्वैकविंशति वा भागमें चार संज्वलन कषायोंको बाँधता है अथवा असंयत देव होकर सतरहको बाँधता है तो तीन प्रकृतिरूप स्थानमें भी दो मुजकार होते हैं। पुनः उन चारको बाँध उतरकर नीचेके भागमें पुरुषवेदके साथ पाँचको बाँधता है अथवा असंयतदेव हो सतरहको बाँधता है तो २५ इस प्रकार इस प्रकार चार प्रकृतिरूप स्थानमें भी दो भुजकार होते हैं। पुनः उन पाँचका बन्ध करके उतरकर अपूर्वकरण गुणस्थानमें हास्य, रति, भय, जुगुप्साके साथ नौका बन्ध करता है या असंयत देव होकर सतरहका बन्ध करता है इस प्रकार पाँचके बन्धस्थानमें भी दो भुजाकार होते हैं। पुनः अपूर्वकरण, अप्रमत्त या प्रमत्त नौका बन्ध करके क्रमसे उतरकर देशसंयत होकर तेरहका अथवा देव असंयत होकर सतरहका बन्ध करे। अथवा प्रथमोपशम सम्यक्त्वी सासादनमें जाकर इक्कीसका बन्ध करे अथवा प्रथमोपशम सम्यक्त्वी या वेदक सम्यग्दृष्टी मिध्यादष्टी होकर बाईसका बन्ध करे इस प्रकार नौ प्रकृतिरूप बन्धस्थानमें चार भुजाकार होते हैं। पुनः तेरहको बाँधकर असंयत या देव असंयत हो सतरहको बांधे, अथवा प्रथमोपशम सम्यक्त्वी सासादन होकर इक्कीसको बांधे या प्रथमोपशम सम्यक्त्वी या वेदक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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