SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 720
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गो० कर्मकाण्डे आयुः कर्मक्के सजघन्यस्थितिबंध योग्यंगळप्प अध्यवसायस्थानंगळ असंख्यात लोकमितंगarya | द्वितीयादिस्थितिविकल्पंगळोळु मेले मेले आवल्यसंख्यातैकभागदिदं गुणितक्र मंगळप्पुवल्लि स्थितिगे षोडशक संदृष्टि । असंख्यात लोकक्के अंकसंदृष्टि द्वाविंशति । २२ । आवल्यसंख्यातगुणकारक्के नाल्कु रूपुगळु संदृष्टि : -- २२|४|१ | २२|४/२ २२४१३ ६ १३४८ जं | २२ अनु ४ अनु ५ अनु ६ अनु ७ ५ ६ ७ Jain Education International २२।४४७ ७ २२।४:४-१ ४ २२४-१ २२/४१५-१ ५ ६ ७ | २२।४।२-१ | २२|४|३|१ | २२|४|४-१ २२।४।६-१ २२४१८ ४ २२|४|१ ५ 6 २२|४|४ ४ ७ २२४-१ ४ ५ ६ २२/४१-१ | २२|४१२ = १ २२२४१३-१ २२|४|४|१ ४ ५ ७ ६ ४ २२४२-१ २२|४|१ २२/४/२/१ | २२|४|३|१ २२|४|४|१ २२|४|१ २२/४१६-१ २२|४|५|१ ५ २४१ ६ २२४२११२२४१३ । १ ७ ૪ ५ ७ ६ ४ २२|४|१ | २२।४।२।१ २२|४|३|१ २२|४|४|१ | २२|४|१ २२।४।५-१ ६ ७ ४ २२|४|३१ | २२|४|४|१ | २२|४-१ २२।४१७-१ २२१४१५१-१ | ४ | ५ २२।४।२।१ २२/४/६ ६ २२|४|३|१ २२१४१९ |२२|४| १० | २२|४|११| २२|४|१२| २२|४|१३ २२।४।१४ | २२|४|१५ 60 आयुः कर्मणः सर्वजघन्यस्थितिबन्धयोग्याध्यवसायस्थानान्यसंख्यातलोका भवन्ति । द्वितीय दिस्थितिविकल्पेष्वावल्यसंख्यातैकभागेन गुणितक्रमाणि भवन्ति । तत्रांकसंदृष्ट्या स्थिति: षोडश १६ । असंख्यात लोको द्वाविंशतिः २२ । अ वल्यसंख्यातश्चतुष्कं ४ । अनुकृष्टिपदमपि चतुष्कं । ४ । संदृष्टिः For Private & Personal Use Only आयुके बिना सात मूलप्रकृतियोंके जो स्थितिबन्धाध्यवसाय स्थान हैं उनके सर्व गुणहानि सम्बन्धी प्रचयोंमें जो प्रथम जघन्य वृद्धि होती है उसमें असंख्यात लोकप्रमाण १० पट् स्थानपतित वृद्धियाँ होती हैं ||९५२|| आयुकर्मके स्थितिबन्धाध्यवसायों में विशेषता बतलाते हैं आयुकर्म की सबसे जघन्य स्थितिबन्धके योग्य अध्यवसाय स्थान असंख्यात लोकप्रमाण हैं । उसको आवलीके असंख्यातवें भागसे गुणा करनेपर जघन्यसे एक समय अधिक दूसरी स्थिति के योग्य अध्यवसाय स्थान होते हैं। इसी प्रकार उत्कृष्ट स्थितिपर्यन्त क्रमसे www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy