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गो० कर्मकाण्डे अनंतरं ज्ञानावरणादिकम्मप्रकृतिस्थितिविकल्पंगळनुपपत्तिपूर्वकं पेळ्दपरु।:
अंतो कोडाकोडिट्ठिदित्ति सव्वे णिरंतरढाणा ।
उक्कस्सट्ठाणादो सण्णिस्स य होति णियमेण ।।९४५॥
अंतः कोटीकोटिस्थितिपय्यंत सर्वाणि निरंतरस्थानानि। उत्कृष्टस्थानात्संज्ञिनो . ५ भवेयुनियमेन ॥
ज्ञानावरणादिसप्तप्रकृतिगळ उत्कृष्टस्थितिमोवळ्गोंडु अंतःकोटोकोटिस्थितिपय॑तं समयोन. क्रमदिनिई सर्वस्थितिविकल्पंगळुवानतोळवनितुं नियमदिदं संशिजीदंगळप्पुवु अq संख्यातपल्यमात्रंगळ्प्पुवु । संदृष्टि :
उप ११
ज।प१
००प०००
अथ सोपपत्तिस्थितिविकल्पानाह१० सप्तकर्मणामत्कृष्टस्थितेरा अन्तःकोटाकोटिसमयोनक्रमेण सर्वे निरन्तरस्थितिविकल्पाः संख्यातपल्यमात्रा
नियमेन संज्ञिजीवानां भवन्ति । संदृष्टिः
उप११
जप
आगे स्थितिके भेद कहते हैं
आयुके बिना सात कोंकी उत्कृष्ट स्थितिसे लेकर अन्तःकोटाकोटी सागर प्रमाण जघन्य स्थिति पर्यन्त क्रमसे एक-एक समय हीन सब निरन्तर स्थितिके भेद संख्यात पल्य १५ मात्र हैं। वे नियमसे संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवके होते हैं।
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