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________________ ९।२ २ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३३७ मत्तमा प्रथमऋणमं स ।।८।५ । विदं संदृष्टिनिमित्त केळगेयुं मेगेयु द्विगुणिसि स ०८।१० अल्लि एकरूपं तेगेदु बेरिरिसि स ।।८।१ शेषमनिद स ०। ८१९ नपत्तिसिदोडे गणहान्यर्द्धमात्रसमयप्रबद्धंगळप्पु। स ० ८.१ ववं प्रथमधनराशियोल बोगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धदोळु कळंदोर्ड द्वयर्द्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धंगळप्पु । स ०।८।३। वल्लि मुन्नं तंगेदु बेरिरिसिब गुणहान्यष्टादशभागऋणदोळु । स ।। ८।१। द्वितीयऋणमं किंचिदून संख्यातवग्गेशलाकामात्र.. समयप्रबद्धंगळं साधिक माडि । स ० । ८॥ द्वयर्द्धगुणहानियोल किंचिदूनं माडिदोर्ड त्रिकोणरचना संकलितसवंधनं समयं प्रति किंचिदूनद्वयर्द्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धं सत्वमक्कुद पेळल्पट्टागमार्थ सुघटितमादुद ॥ १८ समयप्रबद्धासंख्यातकभागमात्रं स । १ साधिकं कृत्वा स ।।१ इदं धनं द्वितीयर्णमध्येऽपनीयापवर्त्य किचिदूनसंख्यातवर्गशलाकामात्र स्यात् । स ० । व १-पुनस्तत्प्रथमर्ण स । ८ । ५ संदृष्टिनिमित्तमुपर्यधो १० द्वाभ्यां संगुण्य- स । ३।८।१० तत्रैकरूपं पृथग्धत्वा स ।।८।१ शेषं स । । । ८।९ अपवर्तितं ९। २ १८ गुणहान्यर्धमात्रसमयप्रबद्ध भवति स ० ८ १ तस्मिश्च प्रथमधनराशी दोगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धेऽपनीते द्वयर्धगुणहानिमात्रसमयप्रबद्धा भवन्ति स । । । ८ । ३ तत्र प्राक्पृथग्धृतगुणहान्यष्टादशभागणे स ।।। ८ । १ १८ द्वितीयणं किंचिदूनसंख्यातवर्गशलाकामात्रसमयप्रबद्धं साधिकं कृत्वा स । । । ८।१ द्वयर्धगुणहानी किंचिदनितं त्रिकोणरचनासंकलितसर्वधनमुक्तप्रमाणं स्यात् । स । । । १२- ॥ ९४४ ॥ १५ समयप्रबद्धका प्रमाण एक लाख आठ सौ है। उसमें से दोनों ऋणोंका प्रमाण उनतीस हजार चार सौ छियानवे घटानेपर इकहत्तर हजार तीन सौ चार रहे। इतनी ही त्रिकोणरचनाका जोड़ है । यह तो अंक संदृष्टि से हुआ। - यथार्थमें तो दो गुणहानिमें-से आधा गणहानि और एक गणहानिका अठारहवाँ भाग तथा संख्यात वर्गशलाका घटानेपर जो किंचित् न्यून डेढ़ गुणहानिमात्र प्रमाण रहा, उससे २० समयप्रबद्धको गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतना सर्व त्रिकोणरचनाका जोड़ होता है । सो किंचित् न्यून डेढ़ गुणहानि गुणित समयप्रबद्ध प्रमाण सत्त्व द्रव्य होता है। यहाँ जोड़नेमें गुणकार दो गुणहानिमें-से आधा गुणहानि और एक गुणहानिका अठारहवाँ भाग तथा संख्यात वर्गशलाका कैसे घटे इसका विधान जीवतत्त्वप्रदीपिका टीकासे जानना चाहिए। कठिन होनेसे यहाँ नहीं लिखा है। केवल सारमात्र लिखा है ।।९४४|| २५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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