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ऋषभजयन्ती संवत् २०३४ में गोम्मटसार जीवकाण्डका प्रथम भाग प्रकाशित हुआ था और ऋषभ निर्वाण चतुर्दशी वि. सं. २०३७ में कर्मकाण्डके दूसरे भाग के साथ गोम्मटसारका प्रकाशन कार्य पूर्ण हुआ है । जब मैंने इस महत्कार्यका भार वहन किया था तो मुझे यह सन्देह था कि यह कार्य पूर्ण कर सकूंगा कि नहीं ? क्योंकि मेरे सहयोगी डॉ. ए. एन. उपाध्ये आयुमें मुझसे तीन वर्ष छोटे होते हुए भी दिवंगत हो गये थे । किन्तु जिनभक्ति प्रसादसे मेरा स्वास्थ्य ठीक रहा और यह महत्कार्य ऐसे समय में पूर्ण हुआ जब श्रवणबेलगोला में अनेकोपाधि विभूषित चामुण्डरायके द्वारा स्थापित बाहुबलि स्वामीकी विशाल मूर्तिकी, जो चामुण्डराय के घरेलू नामपर गोम्मटेश्वर के नामसे विख्यात है, स्थापनाके एक हजार वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में २२ फरवरीके दिन महामस्तकाभिषेक निष्पन्न होने जा रहा है और समस्त विश्वमें उसीकी चर्चा प्रचरित है । तथा भारतके कोने-कोनेसे दर्शनार्थी भक्त जनता उमड़ी चली जा रही है ।
सम्पादकीय
यह गोम्मटसार महाग्रन्थ भी सिद्धान्त चक्रवर्ती आचार्य नेमिचन्द्रने चामुण्डरायके निमित्तसे ही रचा या इसीसे उन्होंने इसको गोम्मटसार नाम दिया है। इस तरह चामुण्डरायके द्वारा प्रस्थापित गोम्मटेश्वर और उनके ही निमित्तसे रचा गया गोम्मटसार ये दोनों अमूल्य कृतियाँ उसी तरहसे परस्पर में सम्बद्ध हैं जैसे भरत और बाहुबलि थे । एक जिनकी प्रतिकृति है तो दूसरी जिनवाणी की।
गोम्मटसार दो भागों में विभक्त है - प्रथम भाग जीवकाण्डको समाप्तिपर ग्रन्थकार नेमिचन्द्रने अन्तिम गाथा द्वारा चामुण्डरायके गुरु अजितसेनका उल्लेख करते हुए गोम्मट नामसे चामुण्डरायका जयकार किया है । किन्तु गोम्मटसार कर्मकाण्डके अन्तमें चामुण्डराय के द्वारा निर्मापित गोम्मटस्वामीको मूर्तिका, उसके आगे निर्मापित ब्रह्म स्तम्भका तथा जिनभवनका उल्लेख विस्तारसे किया है । इससे ऐसा प्रतीत होता है कि जीवकाण्डकी बनाके पश्चात् ओर कर्मकाण्डको समाप्तिसे पूर्व चामुण्डरायने उक्त निर्माण कराया था । गोम्मटसार कर्मकाण्डकी अन्तिम प्रशस्ति एक तरहसे चामुण्डरायकी हो प्रशस्ति है । उसमें ग्रन्थकारने अपने सम्बन्ध में कुछ भी नहीं लिखा ।
जयतु ।'
उसकी अन्तिम गाथाके अर्थके सम्बन्धमें विद्वानोंको सन्देह है । वह गाथा इस रूपमें प्राप्त है
गोम्मटसुत्त लिहणे गोम्मटरायेण जा कया देसी ।
सो राओ चिरकालं णामेण य वीर मत्तंडी ॥ ९७२ ॥
इसकी संस्कृत टीका इस प्रकार है
'गोम्मटसारसूत्रलेखने गोम्मटराजेन या देशीभाषा कृता स राजा नाम्ना वीरमार्तण्डश्चिरकालं
पं. टोडरमलजी ने इसका अर्थ इस प्रकार किया है
'गोम्मटसार ग्रन्थके सूत्र लिखने विषै गोम्मट राजा करि जो देशी भाषा करी सो राजा नामकरि वीरमार्तण्ड चिरकाल पर्यन्त जीतिवंत प्रवृत्तो ।'
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