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________________ १३१० गो० कर्मकाण्डे बैते बोडे गुणकारभूतपंचरूपंगळोळेकरूपं तेगवदक्क द्विकमनित्तु संवर्ग माडिदोर्ड पल्यतृतीयमूलं गुणकारमक्कुं। शेषमं नाल्कुरूपुगळनेटरोडनपत्तिसिोडे पल्यच्छेदालुमक्कुमदक्के द्विकसंवर्ग माडिवोडे लब्धराशिपल्पप्रथममूलं गुण्यमककुमें बुदत्थं । मुनं तेगेदिरिसिदेकरूपिंगे छे ५१ द्विक. संवर्गमं माडुत्तं विरलु यथायोग्यासंख्यातं तृतीयमूलक्के गुणकारमक्कु । मू १ । मू ३ ३ । मिदु ५ पंचाशत्कोटोकोटिसागरोपमस्थितिगे अन्योन्याभ्यस्तराशिषकुं। मत्तं षष्ठिसागरोपमकोटोकोटि स्थितिनानागुणहानिपंक्तियोळु अंतधर्ण छे ६ गुणगुणियं छे ६ आदि। व छ। ६ । विहोणं । ।छे ६ रूऊणुत्तरभजियं छे ६ एंदिदु षष्टिसागरोपमकोटीकोटिस्थितिनानागुणहानिराशि प्रमाणमक्कु । मिदं मुन्निनंते संदृष्टिनिमित्तमागि केळगेयु मेगेयुमेंटरिदं गुणिसि छे ६ । ८ गुणकारदोळेकरूपं तेग बेरिरिसि छे ६ । १ शेषबहुभागमनपत्तिसिदोडिदु छे ३ एतावन्मात्रद्विक ७।८ ७। ८ १. अत्रत्यगुणकारस्यैकरूपमावद्विकाहत्युत्पन्नपल्यतृतीयमूलहतशेषरूपमात्रद्विकाहत्युत्पन्नप्रथममूलं पृथकंकृतरूपो छ । ५।१ त्पन्नासंख्यातेन गुणितं मू १। मू ३।० तदन्योन्याभ्यस्त राशिः स्यात् । ७।८ ष्टिकोटाकोटीसागरोपमलब्धपंक्तो प्राग्वत्संकलितायां छे-६ नानागुणहानिराशिः स्यात् तं च संदृष्टयर्थमुपर्यघोऽष्टभिः संगुण्य छे-६ । ८ एकरूपं पृथग्धृत्य छे-६ । १ शेषमपवर्त्य छे-३ तन्मात्रद्विकाहल्यु७८ ७८ गुणा पल्यके अर्द्धच्छेदोंके आठवें भाग प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर १५ पल्यका तीसरा मूल होता है। शेष रहा चार गुणा। उतने प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गणा करनेपरं पल्यका प्रथम मल होता है। दोनोंको परस्परमें गणा करनेपर जो राशि हो उसको-जो एक गुणकार जुदा रखा था वह किंचित् कम पाँच गुणे पल्यके अर्द्धच्छेदोंके छप्पनवाँ भागका गुणकार था। उतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर असंख्यात होता है-उससे गुणा करें। तब असंख्यात गुणित किंचित् कम पल्यके तीसरे वर्गमूलसे २० गुणित पल्यके प्रथम मल प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि होती है। साठ कोड़ाकोड़ी स्थिति सम्बन्धी पंक्तिमें पूर्वोक्त प्रकारसे जोड़नेपर किंचित् कम छह गुणा पल्यके अर्द्धच्छेदोंका सातवाँ भाग होता है। सो इतनी नाना गुणहानि जानना। उसे आठसे गुणा करके आठसे भाग दें । गुणकारमें से एक जुदा रख शेष सातका गुणकार रहा। पहले सातका भागहार था। दोनोंका अपवर्तन करनेपर किंचित् कम तिगुणा पल्यके २५ १. पुनः सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमाणां तत्पंक्तो छे ७ गुणगुणियं छे ७ । ८ अपवर्त्य छे ७ आदि व छे ७ विहीणं छे ७- । व छ ७ रूऊणुत्तरभजियं छे ७-4 छे ७ अपवयं छे-च-छ । अधिकः पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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