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________________ ७. ८ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३९७ भागमनिदं छे ४ । ७ अपत्तिसिदोडिदु छ एतावन्मात्रद्विकंगळं वग्गितसंवर्ग मारिबोर्ड कन्धराशिपल्यप्रथममूलमक्कु । मू १ । मिदक्के मुन्नं तेगेदिरिसिद धनरूपमिदक्क छे ४१ द्विकसंवर्गम माडि लब्धराशियुं तद्योग्यासंख्यातमक्कुमदुगुणकारमक्कु । मू १ । । मिदु चत्वारिंशत्कोटी. कोटिसागरोपमस्थितिगन्योन्याभ्यस्तराशियकुं। मत्तं पंचाशत्कोटीकोटिसागरोपमस्थितिनानागुणहानिपंक्तियोळु अंतधणं छे ५ गुणगुणियं छे ५। ८ आदि। व छे ५ । विहीणं । छे ५- रूऊणुत्तरभजियं छे ५. यिल्लियुं संदृष्टिनिमित्तं कळगेयुं मेगेयुमेटार गुणिसि छे ५। ८ गुणकारदोलो दुरूपं तंगदु बेरिरिसि छे ५ । १ शेषमनिदं छे ५ । ७ अपत्तिसिदुदं छे ५ विरलिसि द्विकमनित्त वगितसंवर्ग माडिदोडे लब्धराशिप्रमाणं पल्यतृतीयमूलमात्रपल्यप्रयममूलंगळप्पु. ५ ७. ८ ७ ।८ ८ तं च संदृष्टयर्थमुपर्यधोऽष्टभिः संगुण्य छ-४। ८ एकरूपं पृथग्धृत्वा छे- । ४।१ शेष छे-४ । ७ मपवर्त्य ७। ८ ७८ छे-तन्मात्रविकसंवर्गोत्पन्नपल्यप्रथममूलं मू-१ पृथग्धृतकरूपमात्रद्विकसंववर्गोत्पन्न तद्योग्यासंख्यातेन गुणितं १० ७।८ मू-१।। तदन्योन्याभ्यस्तराशिः स्यात् । पंचाशत्कोटीकोटिसागरोपमाणां लब्धपंक्ती प्राग्वत्संकलितायां छ-५ नानागुणहानिराशिः स्यात् । तं च संदृष्टयर्थमुपर्यघोऽष्टभिः संगुण्य छे-५ । ८ एकरूपं पृयग्धृत्वा छे-५ । शेष छे-५ ७ मपवर्त्य छे-५ ८८ ७।८ ७८ ८ रहा। और पहले सातका भागहार था। दोनोंका अपवर्तन करनेपर किंचित् कम पल्यके अर्द्धच्छेदोंसे आधे रहे। इतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर कुछ कम पल्यका १५ प्रथम वर्गमूल हुआ। जो एक जुदा गुणकार रखा था सो वह किंचित् कम चौगुणा पल्यके अद्ध च्छेदोंका छप्पनवाँ भागका गणकार था। अतः उतने दोके अंक रखकर परस्परमें गणा करनेपर यथायोग्य असंख्यात हुआ। उससे गुणा करनेपर असंख्यात गुना किंचित् कम पल्यके प्रथम मूल प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि होती है। पचास कोडाकोड़ी सागर सम्बन्धी पंक्तिमें पूर्वोक्त प्रकारसे जोड़नेपर किंचित् कम २० पाँच गुणा पल्यके अर्द्धच्छेदोंका सातवाँ भाग होता है। इतनी नाना गुणहानि राशि जानना। उसे आठसे गुणा करके आठसे भाग दे । गुणकारमें से एक जुदा रखकर शेष सातका गुणकार रहा और पहले सातका भागहार था। सो दोनोंका अपवर्तन करनेपर किंचित् कम पाँच गुणा पल्यके अद्धच्छेदोंका आठवाँ भाग प्रमाण हुआ। यहाँ पाँच गुणा कहा है उसमें से एक १. पंचाशत्कोटीकोटिसागरोपमाणां तत्पंक्ती अन्तधणं छे ५ गुणगुणियं छे । ५। ८ आदि व छे ५ विहीणं २५ छे-५ रूऊणुत्तरभजियमिति छे-५ । पाठोऽधिकः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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