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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ६९७ भंगंगळप्पुवु १७ देशसंयतर्ग मोहनीयबंधकूटमिदो २ कूटंदोळु अष्टकषायगळं भयद्विक, कूडि दश ध्रुवबंधिप्रकृतिगळप्पुववरोळु पुंवेवमुमं द्विकद्वयदोळो दु द्विकमं कूडुत्तं विरलु त्रयोदशमोहनीयप्रकृतिबंधस्थानमक्कुमदक्के द्विकद्वयकृतभंगद्वितयमेयकुं १३ प्रमतसंयतंगे मोहनीयबंधप्रकृति. कूटमिदी २ कूटदोळ कषायचतुष्कमु भयद्विकमुमितारं ध्रुवबंधिगळप्पुववरोळ पुंवेदमुमं द्विक यदोनोंदु द्विकमुमं कूडुत्तं विरलु नवप्रकृतिबंधस्थानमक्कुमदरोळु द्विकद्वितयकृतभंगद्वयमक्कु ९ ५ । मो प्रमत्तगुणस्थानदोळु अरतिद्विकं बंधव्युच्छित्तियादुदु अप्रमतसंयतंगे मोहनीयप्रकृतिबंधकूटमिदो भ२ फूटदोळ संज्वलनकषायचतुष्कनु भयद्विकमुमंतारुं प्रकृतिगळु ध्रुवबंधिगळप्पुववरोळु हा २ पुवेदे द्विकयोरेकैकस्मिश्च मिलिते सप्तदशकं, तद्भगाः हास्यरतिद्विको द्वौ | १७ असयतबघ८ । २ । १२ द्वादशकषायभय द्विकध्र वबंधिषु द्विकयोरेकस्मिन् पुंवेदे च मिलिते सप्तदशक, तद्भगा द्विकद्वयजौ द्वौ । १७ ॥ देशसंयतबंधकूटे अष्टकषायभयद्वयन वबंधिष पंवेदे द्विकद्वयोरेककस्मिश्च मिलिते त्रयोदशकं. तद्धंगाः द्विकद्वयजी द्वौ १३ । प्रमत्तबंधकूटे २ चतुष्कषायभयद्विकध्र वबंधिषु पुंवेदे द्विकयोरेकस्मिश्च मिलिते नवक २।२ x असंयतमें भी मिश्रको तरह सतरह प्रकृतिरूप स्थान जानना तथा भंग दो जानना। देशसंयत बन्धकूटमें आठ कषाय, भय, जुगुप्सा ये दस ध्रुवबन्धी हैं। इनमें पुरुषवेद और दो युगलों में से एकके मिलनेपर तेरह प्रकृतिरूप स्थान होता है। उसमें एक वेदको दो युगलसे गुणा करनेपर दो भंग होते हैं। प्रमत्त बन्धकूट में चार कषाय, भय, जुगुप्सा ये छह ध्रुवबन्धी हैं। इनमें पुरुषवेद और दो युगलों में से एक मिलानेपर नौ प्रकृतिरूप स्थान होता है । एक वेदको दो युगलसे गुणा करनेपर दो भंग होते हैं। यहाँ अरति और शोककी बन्ध व्युच्छित्ति हो जाती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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