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गोकर्मकाण्डे
६९६ ___भ २ . कूटबोळ षोडशकषायंगळु भयद्विकमंतुमष्टादशमोहब्रुवबंधगळप्पु ववरोळ
हा २।२ अ ०।१।१।
वेदद्वयदोलों दं द्विकद्वयदोळोदु द्विकर्म कूडिदोर्डकविंशतिप्रकृतिस्थानदोळ, वेवद्वयक्कं युगलद्विकक्कं नाल्कु भंगंगळप्पुवु २१ मिश्रंगे मोहनीयबंधकूटमिदी २ कूटदोळ द्वादशकषायंगळं भयद्विक
२.
२
मुमंतु ध्रुवबंधिगळु पविनाल्कप्पुववरोळ, पुंवेदमुं द्विकद्वयदोळोंदु द्विकमुमं कूडिदोडे सप्तदश प्रकृतिस्थानमक्कुमदरोळ हास्यद्विकक्कमरतिद्विकक्कर्मरडे भंगंगळप्पुवु १७ असंयतंगे मोहनीयबंधप्रकृतिकूटमिदी २ फूटदोळ द्वादशकषायंगळू भयद्विकमुमंतु ध्रुवबंधिगळु पविनाल्कप्पुवव
२।२
१२
रोळ द्विकद्वयदोनोंदु द्विकमुमं पुंवेदमुमं कूडिदोडे सप्तदशप्रकृतिस्थानमक्कुमदरोळु द्विकद्वयदेरडे सासादने बंधकूटे । २ भ षोडशकषायभयद्विकध्र वबंधिषु वेदयोटिकयोश्चकैकस्मिन्मिलिते एक
हा २।२। म
विंशतिक, तद्भगाः वेदद्वययुग्मद्वय
द्वादशकषायभयद्विकध्र वबंधिषु
| मिश्रबंधकूटे।
| २।२
१२
१. जो इस प्रकार हैं-उन्नीस ध्रुवबन्धी और पुरुषवेद हास्य रति इस प्रकार एक भंग हुआ।
पुरुषवेदकी जगह स्त्रीवेद होनेपर दूसरा भंग हुआ । नपुंसकवेद होनेपर तीसरा भंग हुआ। तथा हास्य रतिकी जगह शोक अरति होनेपर भी उसी प्रकार तीन भंग होते हैं। इस प्रकार छह भंग होते हैं। इसका मतलब यह है कि बाईसका बन्ध छह प्रकारसे होता है। इसी प्रकार आगे भी प्रकृतियोंके बदलनेसे भंग जानना ।
सासादन बन्धकूटमें सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा ये अठारह तो ध्रुवबन्धी हैं । इनमें पुरुष-स्त्री दो वेदोंमें से एक वेद और दो युगलोंमें-से एक मिलानेपर इक्कीस प्रकृतिरूप स्थान होता है। इनमें से दो वेदोंको दो युगलोंसे गुणा करनेपर चार भंग होते हैं।
__मिश्र बन्धकूटमें बारह कषाय, भय, जुगप्सा ये चौदह ध्रुवबन्धी, इनमें पुरुषवेद और
दो युगलों में से एक मिलानेपर सतरह प्रकृतिरूप स्थान होता है। यहाँ एक वेदको दो युगलसे २० गुणा करनेपर दो भंग होते हैं।
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