SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 687
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका १३१५ छे २ इदं संवृष्टिनिमित्त केळगेयु मेगेयुमेंटरिदं गुणिसि छे २८ एकरूपं तेगदु धेरै स्थापिसि छे २ । १। शेषमपत्तितमिदु । छे। ई राशि नानागुणहानिशलाकेगळप्पुरि विरलिसि द्विक ७। ८ मनित्तु वग्गितसंवग्गं माडुत्तिरलु पल्यद्वितीयमूलमक्कु । मू २। मिदक्के बेरे स्थापिसिदेकरूपमिदं छे । २।१ विरलिसि द्विकमनित्तु वगितसंवर्ग माडिदोडे लब्धं तद्योग्यासंख्यातमक्कु ३ मा ७।८ पूर्वोक्तपल्यद्वितीयमूलक्के गुणकारमक्कु । म २ । । मिदु विंशति कोटोकोटिसागरोपमस्थितिप्रतिबद्धान्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणमक्कुं। त्रिशत्कोटीकोटिसागरोपमस्थितिनानागुणहानिशलाकापंक्तियोळु अंतधणं छे ३ गुणगुणियं छे । ३ । ८ आदि ।' व छे ३ । विहीणं । छ ३ । रूऊणुत्तर भजियं छे ३ ये वितिद् नानागुगहानिशलाकेगळप्पुवु । इदं मुन्निनंते संदृष्टिनिमित्तम दरिदं मेलेयु ७. ८ केळगेयुं गुणिसि छ ३ । ८ एकरूपं तंगदु बेरे स्थापिसि छे ३-१ शेषननिदं छे ३८ अपत्ति ७। ८ ७ ।८ २ विहीणं छे-२ रूउणुत्तरभजियमिति संकलितायां नानागुणहानिराशिः स्यात् छे-२ तं च संदृष्टयर्थमुपर्यधोऽ- १० ष्टभिः संगुण्य छ-२ । ८ एकरूपं पृथग्धृत्या छे-२।१ पवर्त्य छ-तन्मात्रद्विकसंवर्गोत्पन्नपल्यद्वितीयमूलं मू-२ ७८ ७८ पृथग्धृतकरूप छ-२ । १ मात्रद्वि कसंवर्गोत्सन्नतद्योग्यासंख्मातेन गुणितं मू-२ । । तदन्योन्याम्वस्तराशिः स्यात् । ७८ त्रिंशत्कोटीकोटिसागरोपमाणां लब्धपंक्ती प्राग्वत्संकलितायां छ । ३ नानागुणहानिराशिः स्यात् । तं च संदृष्टयर्थमुपर्यषोऽष्टभिः संगुण्य छ- । ३ । ८ एकरूपं पृथग्धृत्य छ- । ३ । १ शेष छ- । ३ । ८ मपवर्त्य ७ ।८ पल्य के अर्द्धच्छेदोंका सातवाँ भाग प्रमाण जोड़ हुआ। इतनी नानागुणहानि जानना। इस १५ प्रमाणको पूर्वोक्त प्रकार आठसे गुणा करके आठका ही भाग दो। सो गुणकारमें एक जुदा रखकर शेष सात गणकार रहा। पहले सातका भागहार था। दोनोंके समान होने सातका अपवर्तन करो। शेष किंचित् कम पल्यके अर्द्धच्छेदोंका चतुर्थ भाग रहा। इतने दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर किंचित् कम पल्यका दूसरा मूल हुआ। तथा जो एक गुणकार जुदा रखा था वह किंचित् कम दूना पल्यके अर्द्धच्छेदोंके छप्पनवाँ भागका गुणकार २० था। अतः उतने प्रमाण दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेपर यथायोग्य असंख्यात हुआ। उससे गुणा करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण असंख्यात गुणित किंचित् कम पल्यका दूसरा वर्गमूल हुआ। तीस कोडाकोड़ी सागर सम्बन्धी पंक्तिमें पूर्वोक्त प्रकारसे जोड़ देनेपर कुछ कम तिगुने पल्यके अर्द्धच्छेदोंका सातवाँ भाग होता है। इतनी नानागुणहानि राशि है । उसको आठसे २१ गुणा करके आठसे भाग दो । गुणकारमें से एक जुदा रख शेष सातका गुणकार रहा। पहले तसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy