SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 686
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५ १३१४ १० गो० कर्मकाण्डे अपिट्ठपंतिचरमो जेत्तियमेत्ताणि वग्गमूलाणं । छेदणिव होति णिहाणिय सेसं च य मेलिदे इट्ठा ॥९३६॥ आत्मेष्टपंक्तिचरमो यावन्मात्राणां वर्गमूलानां । छेदनिवहः इति निर्द्धाध्यं शेषांश्च मिलिते इष्टाः स्युः ॥ ई पंक्तिगळोळिष्टपंक्तियचरमलब्धमेनितनय मूलंगळ छेवनिवहम दु निर्द्धारिसि संकलितं विरलु इष्ट नानागुणहानियक्कुमेर्त दोडी रचनयोप्पित्तु कोटोकोटिसागरोपम प्रतिबद्धपंक्तियो अंतधणं छे २ गुणगुणियं छे । २।८ आदि । व छे । २ । विहोणं छे २ । रूऊणुत्तर भजियं ८ ረ प्र । सा ७० को २ प्र । सा ७० को २ प्र । सा ७० को २ Jain Education International प्र । सा ७० को २ प्र । सा ७० को २ प्र । सा ७० को २ फ । छे ७ ८ फ । छे ७ ८1८ फ । छे ७ टाटाट फ व छे ७८८ फ व छे ७१८ फ । व छे ७ इ। सा ७० को २ इ । सा ७० को २ इ । सा ७० को २ इ। सा ७० को २ इ। सा ७० को २ ६। सा ७० को २ ल । छे ७ ल । छे ७ ८८ ल । छे ७ መሰረ निजेष्टपंक्तेश्च रमलब्धं यावत् वर्गमूलानां छेदनिवह इति निधार्यं संकलिते इष्टस्य नानागुणहानिः स्यात् । तद्यथाविशतिकोटी कोटिसागरोपमाणां लब्धपंक्ती अन्तघणं छे २ गुणगुणियं छे २ । ८ आदि व छे ८ ८ अपनी-अपनी इष्ट पंक्ति में अन्तिम स्थानपर्यन्त जितने स्थान हो उतने वर्गमूलोंके अर्द्धच्छेदोंके समूहको निर्धारित करके सबके मिलानेपर अपने-अपने विवक्षित इष्टकी नानागुणहानि होती है । मिलानेका विधान दस कोड़ाकोड़ी सागर सम्बन्धी पंक्ति में जैसा कहा वैसा ही जानना । इतना विशेष है कि दस कोड़ाकोड़ी सागर सम्बन्धी पंक्ति में जो अन्तधन और आदिका प्रमाण कहा है यहाँ इन छहों पंक्तियोंमें क्रमसे दूना, तिगुना, चौगुना, पाँच१५ गुना, छह गुना और सातगुना जानना । क्योंकि इच्छाराशिके दुगुना, तिगुना आदि होनेपर सब ही दुगुने, तिगुने आदि होते हैं । सो बीस कोड़ाकोड़ी सागर सम्बन्धी पंक्ति में अन्तधन पल्यके अर्द्धच्छेदोंके चतुर्थ भाग है । उसको गुणकार आठसे गुणा करनेपर पल्य के अर्द्धच्छेदोंसे दूना हुआ । उसमें आदिका प्रमाण - पल्की वर्गशलाकाके अर्द्धच्छेदोंसे चौदह गुणा घटाओ। यह प्रमाण किंचित् कम २० करना । फिर उसे एक हीन गुणकार सातका भाग दो। ऐसा करनेपर किंचित् कम दूना For Private & Personal Use Only ल | व छे ८८७ ल | व छे ८७ ल | व छे ७ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy