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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १२७९ ज्ञानावरणादिकम्मंगळ आशधास्थितियनतिक्रमिसि प्रथमगुणहानिप्रयमनिषेकमोळ द्रव्यमं बहुकम कुडुगुमल्लिदं मेले कविशेषहीनदिदं द्रव्यम द्वितीयगुणहानिप्रथम निषेपथ्यंत कुडुगुमी द्रव्यनिक्षेपदोळु द्रव्यहानियं पेळ्दपरु :.. बिदिये बिदियणिसेये हाणी पुब्बिल्लहाणिअद्धं तु । एवं गुणहाणि पडि हाणी अद्ध द्धयं होदि ॥९२१॥ द्वितीयायां द्वितीयनिषेकहानिः पूर्वहान्यद्धं तु। एवं गुणहानि प्रति हानिराद्धं स्यात् ॥ द्वितोपगुणहानिद्वितीयनिषेकदोजु हानिनिताकुमें दो. पूर्वहान्यर्द्धमकुं। यितु गुणहानि गुणहानि प्रति हानिया मक्कु । मनंतरमा द्रव्यनिक्षेपदोळु द्रव्यादिगळ नामनिर्देशमं माडिदपरु : दव्वविदिगुणहाणीणद्धाणं दलसलाणिसेयछिदी । अण्णोण्णगुणसलावि य जाणेज्जो सव्वठिदिरयणे ॥९२२।। द्रव्यस्थितिगुणहान्योरध्वानं दलशलाकानिषेकच्छेदोन्योन्यगुणशलाका अपि च ज्ञातव्याः सर्वस्थितिरचनायां ॥ ___सर्वकम्मंगळ स्थितिरचनेयोचु द्रव्यमं स्थित्यायाममुं गुणहान्यायाममुं दलशलाकेगळे बुवु नानागुणहानिशलाकेगळप्पुवq । निषेकच्छेदमें बुदु दोगुणहानियप्पुददुवं अन्योन्यगुणशलाकेगळे बवु १५ अन्योन्याभ्यस्तराशियक्कुमदुq। यिंतारुं राशिगळ ज्ञातव्यंगळप्पुवु । ज्ञानावरणादिकर्मणामाबाधामतीत्य प्रथम गुणहानिप्रथमनिषेके द्रव्यं बहुकं ददाति तत उपरि द्वितीयगणहानिप्रथमनिषेकपयंतमेकैकचयहीनं ददाति ॥९२०॥ ____ ततो द्वितीयगुणहानिद्वितीयनिषेके हानिः पूर्वहानेरधं स्यात् । एवमुपर्यपि गुणहानि गुणहानि प्रति हानिरर्धाध स्पात् ॥९२१॥ सर्वकर्मस्थितिरचनायां द्रव्यं स्थित्यायामः गुणहान्यायामः दलशलाका:-नानागुणहानिः निषेकच्छेदःदोगणहानिः अन्योन्याभ्यस्तश्चेति षडराशयो ज्ञातव्याः॥९२२॥ ज्ञानावरण आदि कर्मों की स्थितिमेंसे आबाधाकाल बीतनेके बाद प्रथम गुणहानि सम्बन्धी प्रथम निषेकमें बहुत द्रव्य दिया जाता है उससे ऊपर द्वितीय गुणहानिके प्रथम निषेक पर्यन्त एक-एक चय घटता हुआ द्रव्य दिया जाता है ।।९२०॥ २५ दूसरी गुणहानिके दूसरे निषेकमें उसीके पहले निषेकमें जितनी हानि हुई थी उससे आधी हानि होती है। इस तरह पहली गुणहानिमें जो प्रत्येक निषेकमें हानिरूप चयका प्रमाण था उससे दूसरी गुणहानिमें हानिरूप चयका प्रमाण आधा होता है। इसी प्रकार ऊपर भी प्रत्येक गुणहानिमें हानिरूप चयका प्रमाण आधा-आधा होता है ।।९२१॥ सब कर्मोंकी स्थिति रचनामें छह राशि ज्ञातव्य हैं-द्रव्य, स्थिति आयाम, गुणहानि ३० आयाम, दल शलाका अर्थात् नाना गुणहानि, निषेकच्छेद अर्थात् दो गुणहानि और अन्योन्याभ्यस्त राशि। विशेषार्थ-कर्मरूप परिणमे पुद्गल परमाणुओंके प्रमाणको द्रव्यराशि कहते हैं। क-१६१ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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