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गो० कर्मकाण्डे
पादिकचरमोत्तम देहा संख्येय वर्षायुषोनपवर्त्यायुषः । देवनारकभुज्यमानायुध्यबोळं तिग्मनुष्यरुळ असंख्यातवर्षायुष्यदोळं संख्यातवर्षायुष्यरत्प कम्र्म्मभूमिय भोगभूमिकालव तिग्मनुष्यरायुष्यंगळोलं चरमोतमदेहरुगळप्प तोत्थंकरुगळु गणधरदेवरुगल भुज्यमानायुष्यवो मुबीर संभविसदु ।
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आयुष्कर्मवज्जितंगळप्प ज्ञानावरणादिसमकम्मंगळ तंतम्मुत्कृष्ट स्थितिगलोळगे तंतम्१० त्कृष्टा बाधास्थितियं कळेदु शेष स्थितियनितुं निषेकस्थितियककुं 4 नि ! महंगे जघन्यस्थिति
आ
यो जघन्याबाधेयं कटु शेषस्थितियनितुं निषेक स्थितियक्कु
आबाहूणियकम्मट्ठदी णिसेगो दु सत्तम्माणं ।
आउस णिसेगो पुण सगट्ठिदी होदि नियमेण ॥ ९१९ ॥
आबाधोनितक स्थितिन्निषेकस्तु सप्तकम्मं गां । आयुषो निषेकः पुनः स्वस्थितिर्भ
वेन्नियमेन ॥
4 नि
| आ
मायुष्यम् मंदोळं तल्तु मत्तेन्ते बोर्ड आयुष्य कम्मंस्थिति ये नितनितुं निषेकस्थितियक्तुं नियमदिर्दर्क' दोडायुष्यकम्मंदाबाधे भुज्यमानायुष्य स्थितियल्लप्पुर्दारदं ।
अंतागुत्तं विरल :
आवाहं बोलावि य पढमणिसेगम्मि देइ बहुगं तु । ततो विसेसहीणं विदियस्सादिमणि से ओत्ति ॥ ९२० ॥
आबाधामतिक्रम्य च प्रथमनिषेके ददाति बहुकं तु । ततो विशेषहोनं द्वितीयस्याद्यनिषेक
पय्यतं ॥
उदयागतस्यैवोपपादिकचरमोत्तम देहा संख्यवर्षायुभ्योऽन्यत्र तत्सम्भवात् ॥ ९९८ ॥
आयुर्वजितसतकर्मणामुत्कृष्टादिस्थिती तत्तदाबाधायामपनीतायां शेषस्थितिनिषेकः स्यात्
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आयुः कर्मणो निषेकः पुनः यावती स्त्रक्रीया सर्वस्थितिस्तावानेव स्यान्नियमेन तदाबाधायाः पूर्वभवायुष्ये त्र गतत्वात् ॥९१९॥
आयुकी उदीरणा इस भव में नहीं होती यह नियम है । उदयमें आयी हुई भुज्यमान आयुकी ही उदीरणा होती है वह भी देव, नारकी, चरम शरीरी और असंख्यात वर्षकी आयुवाले २५ मनुष्यों और तियं चोंको छोड़कर ही होती है। क्योंकि ये सब पूरी आयु भोगकर ही मरते हैं । इनकी अकालमृत्यु नहीं होती ||९१८||
आयुको छोड़ शेष सात कर्मोंकी उत्कृष्ट आदि स्थिति में आबाधाकाल घटानेपर जो शेष रहे उस कालके समयोंका जितना प्रमाण हो उतने ही निषेक सात कर्मों के होते हैं । किन्तु आर्मी जितनी स्थिति हो उसके समयोंका जो प्रमाण हो उतना ही निषेकका प्रमाण ३० होता है । क्योंकि आयुकर्म की आबाधा पूर्वभवकी आयुके साथ ही बीत जाती है ||९१९ ||
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