SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 605
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२३३ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्वप्रदीपिका मिच्छाइट्ठिप्पहुडिं खीणकसाओत्ति सव्वपदभंगा। पण्णट्ठि च सहस्सा पंचसया होति छत्तीसा ॥८६६॥ मिथ्यादृष्टिप्रभृति झोणकषायपथ्यंत सर्वपदभंगाः। पंचषष्टिसहस्राणि पंचशतानि भवति पत्रिंशत् ।। मिथ्यादृष्टिगुणस्थानं मोदल्गोंडु क्षीणकषायगुणस्थानपथ्यंत सर्वपवभंगंगळू पंचषष्टि- ५ सहस्रेगळं पंचशतंगळं षट्त्रिंशत्प्रमितं गुण्यराशियक्कुं। ६५५३६ ॥ ___अनंतरमा गुण्यभंगंगळ्गे गणकारभंगंगळं मिथ्यादृष्टियादियागि क्षीणकषायपथ्यंतं क्रमदिदं पेळ्दपरु : तग्गुणगारा कमसो. पणणउदेयत्तरीसयाण दलं । ऊणट्ठारसयाणं दलं तु सत्चहियसोलसयं ।।८६७।। तद्गुणकाराः क्रमशः पंचनवतिरेकसप्ततिशतानां वलं ऊनाष्टादशशतानां दलं तु सप्ताधिकषोडशशतं ॥ मिथ्यादृष्टियोळु गुण्यभूत पण्णट्ठिगे गुणकारंगळु एळ सासिरद नूर तो भत्तय्दु गळद्धंमक्कुं । सासादनंगे गण्यभूत पण्णविगे गुणकारभंगंगळ रूपोनाष्टावशशतंगळ मक्कुं ॥ मिश्रंगे तु मत्ते पण्णट्ठिगे गुणकारंगळ सासिरवरुनूरेळप्पुवु ॥ तेवत्तरं सयाई सत्तावट्ठीय अविरदे सम्मे । सोलस चेव सयाई चउसट्ठी खइयसम्मस्स ॥८६८॥ त्रिसप्ततिशतानि सप्तषष्टिश्चाविरतसम्यग्दृष्टौ षोडश चैव शतानि चतुःषष्टिः क्षायिक. सम्यक्त्वस्य॥ असंयतसम्यग्दृष्टियोळु एळ सासिरद मूनूररुवत्तेळ गुणकारंगळं क्षायिकसम्यक्त्वदोळ २० मिथ्यादृष्टयादिक्षीणकषायांतसर्वपदभंगा च्यन्ते । तत्र पंचषष्टिसहस्राणि पंचशतानि षट्त्रिंशच्च गुण्यं भवति ॥८६६॥ तस्य गुण्यस्य गुणकाराः क्रमेण मिथ्यादृष्टी सप्तसहस्र कशतपंचनवत्यर्च, तु-पुनः सासादने रूपोनाष्टादशशताधं । मिश्रे सप्ताग्रषोडशशतानि ।।८६७।। असंयतसम्यग्दृष्टी सप्तषष्टयधिकत्रिशताग्रसप्तसहस्र।। तत्क्षायिकसम्यक्त्वे चतुःषष्टयग्रषोड- २५ मिथ्यादृष्टिसे लेकर क्षीणकषायपर्यन्त सर्वपदोंके भंग कहते हैं। उनमें पैंसठ हजार पाँच सौ छत्तीस गुण्य हैं। इसे ही पण्णट्ठी कहते हैं ।।८६६॥ आगे इस गुण्यके गुणकार कहते हैं उक्त गुण्यके गुणकार क्रमसे मिथ्यादृष्टिमें इकहत्तर सौ पंचानबेका आधा प्रमाण है। सासादनमें एक कम अठारह सौका आधा प्रमाण है । मिश्रमें सोलह सौ सात है ।।८६७॥ ३० असंयतसम्यग्दृष्टीमें तिहत्तर सौ सड़सठ है। क्षायिकसम्यक्त्वमें गुणकार सोलह सौ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy