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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका
१२१५ इल्लि प्रत्येकपदंगळ मंगसंकलनमें तेंदोर्ड इट्टपदे ऊणे इष्टपदं पविनवनय भव्यत्वपर्व १५। रूपोनमावोडे । १४ । दुगसंवग्गम्मि आ रूपोनपदम विरलिसि विकसंवग्गं माडुत्तिरलु पण्णट्टियचतुर्थांशमक्कुं ६५ = १ होइ इट्ठधणं अवल्लिय इष्टषनमक्कुं। असरिच्छाणंतषणं आ असदृश पदंगळ प्रत्येकपदंगळ अवसानधनं ६५ = १ दुगुणेगूणे द्विगुणिसि रूपं कळे बोडिदु ६५ = १ । २। ऋ । सगिट्ठधणं स्वकेष्टधनमक्कुं । ६५ = १ । भ । ई राशिगळणे संकलना ५ निमित्तवागि संदृष्टि | प्रत्येक धन ६५ = ११ कूडि सर्वसु ६५ = १७९९ । ऋ१॥
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गतिगळ ६५%२
लिंग धन ६५-९ कषाय धन ६५ -७२ लेश्या धन ६५ = ८१६ |
| नरकलिंग १ क ४ । ले ३ । ६५ = २ । २ । तिर्य । लिंग ३ क ४ । ले ६ । ६५=२ । २ मनुष्य । लिंग ३ क ४ । ले ६ । ६५=२ । २ देवगति । लिंग २ क ४ । ले ६ । ६५ % २ । २ मिलित्वा कषाय ६५ - २ । २३ २०४ । लब्ध ६५ - ८१६
कुमति १, कुश्रुत २, विभंग ४, चक्षु ८, अचक्षु १६, दान ३२, लाभ ६४, भोग १२८, उपभोग २५६, वीय ५१२, अज्ञान १०२४, असंयम २०४८, असिद्धत्व ४०९६, जीवत्व ८१९२, भव्यत्व १६३२४ इस प्रकार इनके दूने-दूने भंग होते हैं।
इस प्रकार भव्यत्वके भंग पण्णट्ठीके चतुर्थ भाग हुए । उनको दूना करनेपर आधी १० पण्णट्ठी प्रमाण एक गतिके भंग होते हैं। उनको चौगुना करनेपर चारों गतिके भंग दो पण्णट्ठी प्रमाण होते हैं। एक गतिके भंग दूना करनेपर एक पण्णट्ठी प्रमाण भंग एक लिंगके होते हैं। उन्हें नरकगतिमें एकसे, तिथंच तीनसे, मनुष्य में तीनसे और देवगतिमें दो लिंगोंसे गुणा करनेपर सब मिलकर नौ पण्णट्ठी प्रमाण भंग होते हैं। एक लिंगके भंगसे दूने एक कषायके भंग पण्णट्ठीसे दूने होते हैं। उनको नरकमें एक वेदसहित चार कषायसे, तियंचमें तीन १५ वेदसहित चार कषायसे, मनुष्य में भी तीन वेदसहित चार कषायसे, देवगतिमें दो वेदसहित चार कषायसे गुणा करनेपर सब मिलकर पण्णट्ठीसे दुनेको छत्तीससे गुणा करनेपर जो प्रमाण हो उतने भंग होते हैं। एक कषायके भंगोंसे दूने एक लेश्याके भंग चार पण्णट्ठी प्रमाण होते हैं। उनको नरकगतिमें एक लिंग चार कषाय तीन लेश्यासे, तियंचमें तीन वेद चार कषाय छह लेश्यासे, मनुष्यमें भी तीन वेद चार कषाय छह लेश्यासे और देवमें दो वेद २०
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