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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
निवृत्तिकरण साक्षादुपशांत कषाय गुणस्थानारोहणक्क भावमप्पुदरिदं | ८ | ७|
| १ । १ ।
मितप्पल्पतर
बंधविकल्पाभावमकुं । इलिचोदकर्न दपं । उपशांतकषायेंगे मरणमागतं विरलु देवासंयतप्रसंभव मदद | १|१ | मितप्प भुजाकारबंध में तिल्ले' दोडतल्लेक दोर्ड अबद्धायुष्यना७ |८
दोडातं मरणमिलदरि १ मितप्प भुजाकारककभावं सिद्धमकुं । बद्धायुष्यंगे मरणमुंटादोडं
स्थानेऽवस्थित बंधाश्चत्वारः ८
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देवासंयतं स्वस्थितिषण्मासावशेषमादोडल्लदायुबंध योग्यर्तयिल्लप्पुर्दारद १ मितप्प भुजा
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कारक्कमभावं सिद्धमकुं । अल्पमं कट्टुत्तं पिरिदं कट्टिदोर्ड भुजाकारबंध मक्कुं । पिरि
निवृत्तिकरणादी गमनाभावादिमौ
मेवोपशांतकषायेनारोहणादिमा | ८
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भुजाकारबंधौ कुतो नोक्ती ? अवद्धायुष्कस्याऽमरणादस्या १
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देवासंयतस्य स्वस्वस्थितिषण्मासावशेषे एवायुबंधादस्या १
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१ उपशांतकषायस्यावतरणे सूक्ष्मसांपरायं मुक्त्वा
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भुजाकारौ न स्तः । नाप्यप्रमत्तानिवृत्तिकरणयोः समनंतर
वल्पतरौ स्तः । उपशांतकषायस्य मरणे देवा संयत गुणप्राप्तेरीदृशो
पहले आठ कर्मका बन्ध था पीछे भी आठका ही बन्ध होनेपर एक अवस्थित बन्ध हुआ । सातका बन्ध करके पीछे भी सातका बन्ध होनेपर एक हुआ। छहका बन्ध करके छहका बन्ध करनेपर एक हुआ । एकका बन्ध करके पीछे भी एकका बन्ध करनेपर एक हुआ । इस तरह अवस्थित बन्ध चार हुए ।
भावात् । अल्पं बध्वा बहु बनतो भुजाकारो
भावात् । बद्धायुषो मरणे १०
उपशान्त कषायसे उतरकर सूक्ष्म साम्परायको छोड़ अनिवृत्तिकरण में नहीं आ सकता । अतः एकका बन्ध करनेके पश्चात् सात या आठका बन्ध सम्भव नहीं है इससे ये दो भुजकार बन्ध नहीं होते। इसी प्रकार अप्रमत्त या अनिवृत्तिकरणके बीच के गुणस्थानों को छोड़ उपशान्तकषाय में आना सम्भव नहीं है । इससे आठके पश्चात् एकका बन्धरूप और सातके २० पश्चात् एकके बन्धरूप ये दो अल्पतर नहीं होते ।
शंका- जो उपशान्त कषायसे मरकर असंयत गुणस्थानवर्ती देव हुआ उसके एकसे सातके या आठके बन्धरूप जो भुजकार होते हैं वे क्यों नहीं कहे ?
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समाधान — अबद्धायुका तो मरण होता नहीं । अतः एकसे सात के बन्धरूप भुजकारका अभाव है । और बद्धायुका मरण होता है सो देव असंयत गुणस्थानवर्ती हुआ। वहाँ २५
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