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गो० कर्मकाण्डे
| मिश्र । औदयि | पारिणा | इल्लि गुण्य ७। प्र गु १। क्षे ४। द्वि गु ४। क्षे ३ । णा | व | ल । ७ । भ । त्रि गु३। स्वसं क्षे ३। कूडि गुण्य ७। गु८। क्षे १०। लन्ध भंग ६६ ॥ असंयतंगे | उपश | क्षायि | मिश्र । औ | पारि | इल्लि गुण्य ७। प्र गु १। क्षे ७। द्वि [सं १ | सं १ | ण | व | अ | ल | ७ | भ१।
गु ७ । क्षे १२ । त्रि गु १२ । क्षे ६। चतु गु ६ । स्वसंक्षे ३ । कूडि असंयतंगे गुण्य ७। गु २६ । ५ क्षे २८ । लन्यभंगंगळु असंयतंगे २१० ॥ देशसंयतंगे उक्षा | मि |
औ पा
सं| सं । णा | द । ल । वे | चा| ६ | भ यिल्लिगुण्यंगळ ६ । प्रग १। क्षे ८ । द्विगु ८ । क्षे १५ । त्रि गु १५ । क्षे ८ । च गु ८ । स्वसं मिश्रे । मिश्र ओ | पारि | गुण्यं ७ प्रगु १ क्षे ४ । द्विगु ४ क्षे ३ । त्रिगु ३ स्वसंक्षे ३
णा। दं। ल | ७| भ । मिलित्वा गुण्यं ७ गु८। क्षे १० भंगाः ६६ । असंयते | बं | उप | क्षा| मिश्र । ओ | पा | गुण्यं ७ प्रग १ क्षे ७ । द्विगु ७ क्षे
|सं ११ सं शसं १ णा । दं । ल ।। ७ । भ । १० १२ । त्रिगु १२ क्षे ६ चगु ६ स्वसंक्षे ३ मिलित्वा गुण्यं ७ गु २६ क्षे २८ भंगाः २१० । देशसंयतादित्रये प्रत्येकं | उप | क्षा। मिश्र ओ | पा | गुण्यं ६ प्रगु १ क्षे
| सं|सं | णा। दं । ल । वे चा। ६ | भ
गुणकार तीन है। स्वसंयोगीमें क्षेप तीन हैं। सब मिलकर गुण्य सात, गुणकार आठ और क्षेप दस होनेसे भंग छियासठ हैं।
मिश्र गुणस्थानमें मिश्रभावके ज्ञान, दर्शन, लब्धि ये तीन, औदयिकके सात, पारि१५ णामिकके भव्यत्वरूप एक जातिपद है। यहाँ गुण्य सात हैं। प्रत्येक भंगमें गुणकार एक क्षेप
चार, दो संयोगी भंगमें गुणकार चार क्षेप तीन, तीन संयोगीमें गुणकार तीन, स्वसंयोगीमें क्षेप तीन । सब मिलकर गुण्य सात, गुणकार आठ, क्षेप दस होनेसे भंग छियासठ होते हैं।
असंयतमें औपशमिकका एक सम्यक्त्व, क्षायिकका एक सम्यक्त्व, मिश्रके तीन ज्ञान दर्शन लब्धि, औदयिकके सात, 'पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक जातिपद है। वहां गुण्य सात २. हैं। प्रत्येक भंगमें गुणकार एक, क्षेप सात, दो संयोगीमें गुणकार सात क्षेप बारह, तीन
संयोगीमें गुणकार बारह, क्षेप छह, चार संयोगीमें गुणकार छह । पाँच संयोगीका अभाव है क्योंकि क्षायिक सम्यक्त्व और उपशम सम्यक्त्वका संयोग नहीं होता। स्वसंयोगीमें क्षेप तीन । सब मिलकर गुण्य सात, गुणकार छब्बीस और क्षेप अठाईस होनेसे भंग दो सौ दस
होते हैं। २५ देशसंयत आदि तीनमें औपशमिकका एक सम्यक्त्व, क्षायिकका एक सम्यक्त्व,
मिश्रके चार-ज्ञान दर्शन लब्धि वेदक चारित्र, औदयिकके छह, पारिणामिक एक भर जातिपद है। यहां गुण्य छह हैं। प्रत्येक भंगमें गुणकार एक क्षेप आठ हैं। दो संयोगोमें
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