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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका दृष्टि । मिश्र औ | पारि | यिल्लि बौदयिक भावंगळे टु जातिपदंगळु गुण्यंगळप्पुवु ।
| अवं| ल|८ । भव । गुण्य ८।३१।क्षे ५ । द्विगु ५ । क्षे ६ । त्रिग ६ । स्वसंयोगक्षेपंगळु ३ । इल्लि स्वसंयोगमें ते. दोर्ड जातिपदत्वविवं अज्ञानदोळं दर्शनवोळं लब्धिगळोळं संभविसुगम वरिउदु कूडि मिथ्यादृष्टिगे गुण्य ८ । ग १२ । क्षे १४ । ई गण्यगणकारंगळं गुणिसि क्षेपंगळं कडिद लब्धभंगंगळु ११० । सासादनंग
| नन । आदइ । पारि | इल्लि गुण्यगळु ७॥प्रगु १४॥ ४ । क्षे३ । त्रिसंग ३ । स्व संक्षे ३ कूडि सासादनंगे गण्य ७ । ग ८।क्ष १० । लब्ध भंग ६६ । मिश्रंग
|_ मिश्र ो । पारि | औदयिकान्यष्टो गुण्यं ८ । प्रगु १ क्षे ५। द्विगु ५ क्षे ६ । त्रिगु ६।
अ। दं । ल।।८भ । म वसंयोगक्षेपाः कुज्ञानान्तरं दर्शने दर्शनान्तरं लब्धौ लब्ब्यन्तरमिति त्रयः ३। मिलित्वा गुण्यं ८ गु १२ क्षे १४ गुण्यगुणकारान् संगुण्य क्षेपेषु निक्षिप्तेषु लब्धभंगाः ११० । सासादने ।_ मित्र औ | पाार | गुण्यं ७ प्रगु १ क्षे ४ । द्विगु ४ क्षे ३ । त्रिगु ३ स्वसंक्षे ३ १०
| अ । दं । ल । |७| भ 'मलित्वा गण्यं ७ । गु ८ क्षेप १० भंगाः ६६ ।
भावोंके संयोगसे जो दो संयोगी आदि भंग हों उन्हें क्षेपरूप जानना। तथा क्षायिक या मश्रके एक जातिपदके भेद में उसीके अन्य भेद जहाँ सम्भव हों वहां स्वसंयोगी भंग होते है उन्हें क्षेपरूप जानना। इस प्रकार गुण्यको गणकारसे गणा करके क्षेपको जोड़नेपर जतने हों, उतने भंग जानना। ___सो मिथ्यादृष्टिमें मिश्रके अज्ञान, दर्शन, लब्धि ये तीन, औदयिकके आठ और पारिणामिकके भव्य-अभव्यरूप दो जातिपद हैं। उनमें से औदयिकके आठ तो गुण्य जानना। प्रत्येक भंगमें औदयिकका आठका समूहरूप एक तो गुणकार जानना, और तीन मिश्रके, दो पारिणामिकके ये पाँच क्षेप जानना। दो संयोगीमें औदयिकके आठका समूहरूप एकका योग लिये तीन मिश्रके और दो पारिणामिकके ये पाँच तो गुणकार जानना। तथा तीन २० मिश्रके संयोग सहित दो पारिणामिकके भेदरूप छह दोसंयोगी क्षेप जानना। तीन संयोगीमें औदयिकके आठका समूहरूप एक और अभव्य पारिणामिकके इन दोनोंके साथ तीन मिश्रको मिलानेसे हुए छह भंग गुणकाररूप जानना। स्वसंयोगीमें एक अज्ञान होते दूसरा अज्ञान पाया जाता है जैसे कुमति के साथ कुश्रुत आदि होते हैं। इसी तरह एक दान होते अन्य दर्शन पाये जाते हैं। जैसे चक्षुदर्शन होते अन्य दर्शन होते हैं। इसी तरह एक लब्धि २५ होते अन्य लब्धि होती है जैसे दान होते लाभादि होते हैं। ये तीन भंग क्षेप जानना। सब मिलकर गुण्य आठ, गुणकार बारह, क्षेप चौदह होते हैं। गुण्यको गुणकारसे गुणा करके क्षेपको जोडनेपर एक सौ दस भंग होते हैं।
इसी प्रकार सासादनमें मिश्रभावके अज्ञान, दर्शन, लब्धि ये तीन, औदयिकके सात, पारिणामिकका भव्यत्वरूप एक जातिपद है। उसमें गुण्य सात हैं। तथा प्रत्येक भंगमें ३० गुणकार एक, क्षेप चार हैं। दो संयोगी भंगमें गुणकार चार क्षेप तीन हैं। तीन संयोगीमें
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