SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 563
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मिच्छतिए मिस्सपदा तिण्णि य अयदम्मि होति चत्तारि । देशतिये पंचपदा ततो खीणोत्ति तिण्णि पदा ॥८४६॥। मिथ्यावृष्टित्रये मिश्रपदानि त्रीणि च असंयते भवंति चत्वारि । देशसंयतत्रये पंचपवानि ततः क्षीणकषायपथ्यंतं त्रीणि पदानि ॥ मिथ्यादृष्टिसासावनमिधाळोळु प्रत्येकं मिश्रपदंगळु मूरुमूरप्पुवु । असंयतसम्यग्दृष्टियोळु ५ . नाल्कु मिश्रपदंगळप्पुवु । देशसंयतादि त्रयोळ पंच पंच मिश्र पदंगळप्पुवु । अल्लिद मेले क्षीणकषायपयंतं प्रत्येक मूलं मूरु मिश्रपदंगळप्पुवु ॥ मिच्छे अठ्ठदयपदा तो तिसु सत्तेव तो सवेदोत्ति । छस्सुहुमोत्ति य पणगं खीणोत्ति जिणेसु चदुतिदुगं ।।८४७॥ मिथ्यादृष्टावष्टोदयपवानि ततस्त्रिषु सप्तैव ततः सवेदपय्यंतं षट् सूक्ष्मसांपरायपथ्यंत १० पंचकं क्षीणकषाय पयंतं जिनयोश्चतुखिवयं ॥ मिथ्यावृष्टियोळीवयिकपवंगळे टप्पुवु । सासादनादित्रयदोळु प्रत्येक सप्तपदंगळप्पुवु । मेले देशसंयतादि सवेदानिवृत्तिपप्यंत प्रत्येकं षट्पदंगळप्पुवु। सूक्ष्मसांपरायपय्यंत पंचपंचपदंगळप्पुवु । क्षीणकषायपय्यंतं सयोगरोळमयोगरोळं क्रमदिवं नाल्कुं मूरुमेरडुमप्पुवु ॥ मिच्छे परिणामपदा दोणि य सेसेसु होदि एक्कं तु । जातिपदं पडि बोच्छ मिच्छादिसु भंगपिंडं तु ॥८४८॥ मिथ्यादृष्टो परिणामपदे द्वे च शेषेषु भवत्येक तु । जातिपदं प्रति वक्ष्यामि मिथ्यादृष्टयाविषु भंगपिडं तु॥ marw मिश्रपदानि मिथ्यादृष्ट्यादिश्ये श्रीणि । असंयते चत्वारि । देशसंयतादित्रये पंच। तत उपरि क्षीणकषायान्तं त्रीणि ॥८४६।। औदयिकपदानि मिथ्थादृष्टावष्टौ । सासादनादित्रये सप्त । उपरि सवेदानिवृत्त्यन्तं षट् । सूक्ष्मसाम्परायान्तं पंच । क्षीणकषायान्तं चत्वारि । सयोगे त्रीणि । अयोगे द्वे ॥८४७॥ २० मिश्रभावके जातिपद मिथ्यादृष्टि और सासादनमें अज्ञान, दर्शन, लब्धि ये तीन हैं। और मिश्र गुणस्थानमें ज्ञान, दर्शन, लब्धि ये तीन हैं। असंयतमें ज्ञान, दर्शन, लब्धि, सम्यक्त्व ये चार हैं। देशसंयत आदि तीनमें ज्ञान, दर्शन, लब्धि, सम्यक्त्व इन चारोंके । साथ देशसंयतमें देशसंयम और प्रमत्त अप्रमत्तमें सरागसंयम होनेसे पाँच हैं। उससे ऊपर क्षीणकषायपर्यन्त ज्ञान, दर्शन, लब्धि तीन जातिपद हैं ।।८४६॥ औदयिकभावके जातिपद मिथ्यादृष्टिमें आठ हैं-गति, कषाय, लिंग, लेश्या, मिथ्यात्व, अज्ञान, असंयम और असिद्धत्व । सासादन आदिमें मिथ्यात्वके बिना सात हैं। ऊपर अनिवृत्तिकरणके सवेद भागपर्यन्त असंयमके बिना छह है। उससे ऊपर सूक्ष्मसाम्प-.. रायपर्यन्त वेदके बिना पाँच हैं। उससे ऊपर क्षीणकषायपर्यन्त कषायके बिना चार हैं। सयोगीमें अज्ञानके बिना तीन हैं तथा अयोगीमें लेश्या बिना दो हैं ॥८४७॥ क-१५० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy