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कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका गु ४ । क्षे ३ । लब्धभंगंगळ ७ । अयोगिभट्टारकंगेयुमित प्र गु १।२२। द्विगु २। क्षे १। जि गु १ कूडि गुण्य १ । ग ४ । क्षे ३ । लब्धभंगंगळु ७ । सिद्ध परमेष्टिगे |क्षा| पा | इल्लि प्रक्षे २।
२ | जी द्विसंयोगक्षे १ । कूडि भंगंगळु ३ । उपशमकापूर्वकरणंगे | उ | था | मि ! औ| पा| इल्लि प्र
२ | १ | १२ । ६ | भ|
गु २० क्षे १९ भंगाः ७९ । अमानभागे गुण्यं २ गु २० क्षे १९ भंगाः ५९ । अमाय भागे गुण्यं १ गु २० क्षे १९ भंगाः ३९ ।
सूक्ष्मसाम्पराये गुण्यं १ गु २० क्षे १९ भंगाः ३९ । क्षीणकषाये गुण्यं १ गु २० क्षे १९ भंगाः ३९ । सयोगे|क्षा | औ | पा |
। अत्र प्रग १२ । द्विग २ क्षे१। त्रिग १ । मिलित्वा गण्यं १
ग४ क्षे ३ भंगाः । अयोग-क्षा । कोपा अत्र प्रगु १ क्षे २। द्विगु २ क्षे १। त्रिगु १ मिलित्वा गुण्यं १
। १ । २ । म गु ४ क्षे ३ भंगा: ७॥ सिद्धे-- |क्षा पा
प्रक्षे २ द्विक्षे १ मिलित्वा भंगा: ३ । | १ | जी
वेदरहित भागकी तरह जानना । अतः गुणकार बीस और क्षेप उन्नीस हैं। किन्तु गुण्य तीन होनेसे उन्यासी भंग होते हैं। मानरहित भागमें भी उसी प्रकार गुणकार बीस और क्षेप उन्नीस होते हैं। किन्तु गुण्य दो होनेसे भंग उनसठ होते हैं । मायारहित भागमें भी गुणकार बीस और क्षेप उन्नीस होते हैं। किन्तु गुण्य एक होनेसे भंग उनतालीस होते हैं।
१५ सूक्ष्मसाम्परायमें भी उसी प्रकार गुणकार बीस और क्षेप उन्नीस हैं तथा गुण्य एक होनेसे उनतालीस भंग होते हैं।
क्षीणकषायमें भी उसी प्रकार गुणकार बीस, क्षेप उन्नीस और गुण्य एक होनेसे मंग उनतालीस होते हैं । सयोगीमें शायिकका एक, औदायिकका तीनरूप एक और पारिणामिक एक, इस प्रकार तीन स्थान हैं। उनमें प्रत्येक भंगमें गुणकार एक क्षेप दो, · दो संयोगीमें २० गुणकार दो क्षेप एक, तीन सयोगीमें गुणकार एक। सब मिलकर गुणकार चार क्षेप तीन और एक गण्य होनेसे सात भंग होते हैं। अयोगीमें मायिकका एक. औदायिकका दो रूप एक तथा पारिणामिक एक, इस प्रकार तीन स्थान हैं। उनमें सयोगीकी तरह गुणकार चार क्षेप तीन और गुण्य एक होनेसे सात भंग होते हैं।
सिद्धोंमें क्षायिकका एक, पारिणामिकका जीवत्वरूप एक इस तरह दो स्थान हैं। २५ वहाँ प्रत्येक भंगमें क्षेप दो, दो संयोगीमें क्षेप एक मिलकर तीन भंग होते हैं।
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