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गो० कर्मकाण्ड एंदितु मूरु भंगमक्कुं३ । त्रिसंयोगमोदे भंगमक्कु । १ ॥ मितु परसंयोग भंगमेळेयापुवु ।७॥ स्वसंयोगं मिश्रदळ मिश्र{ औवयिकदोळोदयिकमुं पारिणामिकदोलु पारिणामिकमुमितु स्वसंयोगंगळ मूरप्पुवु ।३॥ इंतु मूलभावंगळवरोळ मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळ संभविसुव मूलं मूलभावंगळ्गं परसंयोग स्वसंयोगभंगंगळ पत्तप्पुवु । मिथ्या मू भा-३ । भं १० । सासादनंगेयुमितेयप्पवु । सासा । मू भा ३ । भं १० । मिश्रंगयुमितेयक्कं । मिश्र मू भा ३। भं १० । असंयतादिचतुर्गुणस्थानदोळ मूलभादंगळग्दुं संभविसुगं। औप। क्षा। मि । औपा। इल्लि प्रत्येक भंगंगळु अय्दप्पुवु १५ ॥
क्षायोपशमिकोदयिकपारिणामिकास्त्रयस्त्रयः । तत्र परसंयोगे प्रत्येकभंगास्त्रयस्त्रयः । द्विसंयोगास्त्रयः । त्रिसंयोगे एकः । स्वसंयोगे मिश्रे मिश्रः । औदयिके औदयिकः । पारिणामिके पारिणामिकः इति त्रयः मिलित्वा दश । असंगतादिचतुष्के मूलभावा: पंच पंच । तत्र प्रत्येकभंगाः पंच। द्विसंयोगा नवैव प्रौपशमिकक्षायिकयोर
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१० चारित्र घटानेपर उपशान्त कषायमें इक्कीस भाव हैं। इनमें ओपशमिक सम्यक्त्व चारित्र
घटाकर झायिक चारित्र मिलानेपर क्षीण कषायमें बीस भाव हैं। सयोगीमें मनुष्यगति शुक्ललेश्या असिद्धत्व ये तीन औदयिक, झायिक नौ, दो पारिणामिक ये चौदह भाव है। इनमें से शुक्ललेश्या घटानेपर अयोगीमें तेरह भाव हैं। सम्यक्त्व ज्ञान दर्शन वीर्य ये चार क्षायिक और जीवत्व पारिणामिक ये पाँच भाव सिद्धोंमें हैं।
ये नाना जीव और नाना काल अपेक्षा जानना। आगे एक जीवके एक कालमें जितने भाव सम्भव हैं वह कहते हैं
मिथ्यादृष्टि आदि तीन गुणस्थानों में मूल भाव तीन होते हैं। परसंयोगमें प्रत्येक भंग तीन औदायिक मिश्र पारिणामिक होते हैं । द्विसंयोगी भंग तीन हैं-औदयिक मिश्र, औदयिक
पारिणामिक, मिश्र पारिणामिक । तीनोंका संयोगरूप त्रिसंयोगी भंग एक औदयिक मिश्र २० पारिणामिक । स्वसंयोगी भंग तीन-औदयिकमें औदायिक, मिश्रमें मिश्र, पारिणामिकमें पारिणामिक । इस प्रकार सब दस हुए।
विशेषार्थ-प्रत्येक द्विसंयोगी त्रिसंयोगी आदि भंग लानेकी विधि जैसे आस्रवाधिकारमें कहा था वैसे ही जानना । विवक्षित संख्याके प्रमाणरूप अंकसे लगाकर एक-एक हीन
संख्या लिखो। वे तो अंश हुए। उनके नीचे एकसे लगाकर एक-एक अधिक अंक लिखो। २५ उन्हें हार जानना। उनमें पहले अंशसे आगेके अंशको और पहले हारसे आगेके हारको
गुणा करके अंशके प्रमाणमें हारके प्रमाणसे माग देनेपर क्रमसे प्रत्येक द्विसंयोगी आदि भंगोंका प्रमाण आता है। सो मिथ्यादृष्टि आदि तीनमें मूलभाव तीन हैं। सो तीनसे लेकर एक-एक हीन अंक लिखो-तीन दो एक । उनके नीचे एक दो तीन लिखो। पहले तीनको एकका
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भाग देनेसे तीन आये । सो तीन प्रत्येक भंग हुए । तीनको दोसे गुणा करके उसे एकसे गुणित ३० दोका भाग देने पर तीन आये। तीन द्विसंयोगी भंग जानना। फिर छहको एकसे गुणा करके
उसमें दो गुणित तीनका भाग देनेपर एक आया । सो एक त्रिसंयोगी भंग हुआ। इसी प्रकार मूलभावों और उत्तरभावोंमें प्रत्येक द्विसंयोगी त्रिसंयोगी भंगोंकी विधि जानना।
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