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________________ ११५८ गोकर्मकाण्डे आ मूलभावंगळ नामनिर्देशमं माडिवपरु : उवसमखइयो मिस्सो ओदइयो पारिणामियो भाओ। भेदा दुगु णव तत्तो दुगुणिगिवीसं तियं कमसो ॥८१३।। औपशमिकः क्षायिको मिश्रः औदयिकः पारिणामिको भावो। भेदा द्वयं नव ततो द्विगुण ५ एकविंशतिस्त्रयः क्रमशः॥ औपशमिकमुं क्षायिक, मिश्रमुमोदयिक, पारिणामिकमुमदु भावंगळ पंचप्रकारंगळप्पुविवर भेदंगळु द्वयमुं नवमुं नवद्विगुणमुमेकविंशतियुं त्रयमुमप्पवु । क्रमदिदं औपशमिक २ । क्षायिक ९ । मिश्र १८ । औदयिक २१ । पारिणामिक ३ ॥ __ कम्मुवसमम्मि उवसमभाओ खीणम्मि खयियभावो दु । उदओ जीवस्स गुणो खओवसमिओ हवे भाओ ॥८१४॥ कर्मोपशमे उपशमभावः क्षये क्षायिको भावः तु। उदयो जीवस्य गुणः क्षयोपशमिको भवेदभावः॥ प्रतिपक्षकम्र्मोपशमदिदमौपशमिकभावमकुं । प्रतिपक्षकर्मनिरवशेषक्षयविंदं क्षायिकभावमक्कुं। तु मत्तै प्रतिपक्षकर्मोदयमुं जीवगुणममेर९ मिश्रमागि क्षायोपशमिकभावमक्कु॥ कम्मुदयजकम्मिगुणो ओदइयो तत्थ होदि भावो दु। कारणणिरवेक्खभवो समावियो होदि परिणामो ॥८१५॥ कर्मोदयजनितसंसारिजीवगण औदयिकस्तस्मिन्भवति भावस्तु । कारणनिरपेक्षभवः स्वाभाविको भवति पारिणामिकः॥ कर्मोदयजनितसंसारिजोर्वगणं अल्लि पुट्टिबुदु औदयिकभावमें बुदक्कु । मुपशमक्षयक्षयोप. तत्र मूलभावा औपशमिकः क्षायिकः मिश्रः औदयिकः पारिणामिकश्चेति पंच । ततः पश्चात्तेषां भेदाः क्रमशो द्वौ नवाष्टादशकविंशतिस्त्रयो भवन्ति ॥८१३॥ प्रतिपक्षकर्मोपशमे सत्यौपमिकभावः स्यात् । तन्निरवशेषक्षये क्षायिकभावः स्यात् । तु-पुनः तदुदयो जीवगुणश्चेति द्वयं मिश्रं क्षायोपश:मकभावः स्यात् ।।८१४॥ कर्मोदयजनितसंसारिजीवगुण उदयः, तत्र भव औदयिकभावः स्यात् । उपशमक्षयक्षयोपशमोदयनिर मूलभाव पाँच है-औपशमिक, भायिक, मिश्र, औदयिक, पारिणामिक। उनके भेद २१ क्रमसे दो, नौ, अठारह, इक्कीस और तीन हैं ॥८१३॥ प्रतिपक्षी कर्मका उपशम होनेपर औपशमिकभाव होता है। प्रतिपक्षो कर्मका पूर्ण रूपसे क्षय होनेपर क्षायिकभाव होता है। तथा प्रतिपक्षी कर्मका उदय भी रहे और जीवका गुण भी प्रकट रहे इस तरह दोनोंके मिश्र रूप होनेपर झायोपशमिकभाव होता है ।।८१४॥ कर्मके उदयसे उत्पन्न संसारी जीवके गुणको उदय कहते हैं। उससे होनेवाला १. मगणं औद। ३० For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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