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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
तिब्बसायो बहुमोह परिणदो रागदोससंसत्तो । बंधदि चरितमोहं दुविहंपि चरित्तगुणघादी ||८०३ ||
तीव्रकषायो बहुमोहपरिणतो रागद्वेष संसक्तः । बध्नाति चरित्रमोहं द्विविधमपि चरित्रगुणधाती ॥
कषाय नोकषायंगळ तीव्रोदयमनुं बहुमोहपरिणतनुं रागद्वेषसंसक्तनुं चारित्रगुणमं fasyaशीलमनु जीवं कषायनोकषाय भेददिदं द्विविधमप्प चारित्रमोहनीय कर्ममं कट्टुगुं ॥ मिच्छो हु महारंभो णिस्सीलो तिब्बलोहसंजुत्तो णिरयाउवं णिबद्धइ पावमई रुद्द परिणामो ||८०४ ॥
मिथ्यादृष्टिः खलु महारंभो निःशीलस्तीव्रलोभसंयुक्तः । नरकान्निबध्नाति पापमती रौद्रपरिणामः ॥
बह्वारंभमनुळलनुं निःशोलनुं तीव्रलोभयुक्तनुं मिथ्यादृष्टियप्प जीवं रौद्रपरिणाममनुनुं पापकारण बुद्धिगळनुं स्फुटमागि नरकायुष्यमं कट्टगुं ॥
जीवः ॥
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उम्मग्गदेसगो मग्गणासगो गूढहियय माइल्लो |
सठसीलो य ससल्लो तिरियाउं बंधदे जीवो ॥८०५ ॥
उन्मार्गदेशको मार्गनाशको गूढहृदय मायावी । शठशीलश्च सशल्यस्तिय्यं गायुबध्नाति १५
उन्मार्गोपदेशकनुं सन्मार्गनाशकनुं गूढहृदयमायावियं शठशीलनुं सशल्यनुमप्प जीवं तिगायुष्यमं कट्टुगं ॥
यः तीव्र कषायनोकषायोदययुतः बहुमोहपरिणतः रागद्वेषसंसक्तः चारित्रगुणविनाशनशीलः स जीवः कषायनोकषायभेदं द्विविधमपि चारित्रमोहनीयं बध्नाति ॥८०३ ॥
यः खलु मिथ्यादृष्टिः बह्वारम्भः निश्शीलः तीव्रलोभसंयुक्तः रौद्रपरिणामः स जीवो नरकायुबंध्नाति ॥ ८०४ ॥
यः उन्मार्गोपदेशक! सन्मार्गनाशक: गूढहृदयो मायावी शठशीलः सशल्यः स जीवस्तिर्यगायुबध्नाति ॥८०५॥
जो जीव मिथ्यादृष्टी है, बहुत आरम्भवाला है, शील रहित है, तीव्र लोभी है, रौद्र परिणामी है, जिसकी बुद्धि पाप कार्यमें रहती है वह जीव नरकायुको बाँधता है ||८०४ ॥
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जिसके तीव्र कषाय और नोकषायका उदय है, बहुत मोह युक्त है राग द्वेष से घिरा २५ है, चारित्र गुणको नष्ट करनेका जिसका स्वभाव है वह जीव कषाय नोकषायके भेदसे दो रूप चारित्र मोहका बन्ध करता है || ८०३ ॥
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जो विपरीत मार्गका उपदेशक है, सन्मागका नाशक है, गूढ़ हृदय है, मायाचारी है, ३० स्वभावसे दुष्ट है, मिथ्यात्व आदि शल्योंसे युक्त है वह तिथंच आयुको बाँधता है ||८०५ ||
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