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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७२॥ मत्तमवेदभागेयोळु क ४ । यो ९ । गुणिसिदोर्ड मुवत्ता ३६ । मत्तं क्रोधरहितभायोल क ३ ! यो ९ । गुणिसिदोडे इप्पत्तेळप्पुव २७ । मत्तं मानरहितभागेयोळु क २ । यो ९ ॥ गुणिसिबोर्ड पदिने टप्पूव । १८ । मत्त मायारहित भागेयो क १ । यो ९ । गुणिसिवोडे ओभत्तप्पुवु । ९ ॥ इंत निवृत्तिकरणना राशिगळं कूडिनरपत्तप्पुवु । २७० ॥ सूक्ष्मसांपरायंगे क १ । यो ९ । गुणिसिदोडों भत्ते भंगळ । ९ ॥ उपशांतकषायंगे योगभेदव भत्ते भंगंगळवु । ९ ॥ क्षीणकषायंगं योगभेद दो भत्ते भंगंगळप्पुवु । ९ ॥ सयोगकेवलि भट्टारकंगं योगभेदविदं प्रत्ययभंगंगळेळेय । ७ ॥ अयोगिजिन स्वामियोळु प्रत्ययं शून्यमक्कु ॥ अनंतरमी भंगंगळ तुच्चरिसि तोरिदपरु : चवीसारसयं तालं चोदसय सीदिसोलसयं । छण्णउदी वारस बत्तीसं बिसद सोल बिसदं च ॥ ७९७ ॥ चतुव्विशत्यावशशतं चत्वारिंशच्चतुर्द्दश अशोति षोडश । षण्नवतिद्वादशशतं द्वात्रिंशत् द्विशतं षोडश द्विशतं च ॥ ११४७ तावंत: । अनिवृत्तिकरणे सवेदभागे ४ । वे ३ । यो ९ । गुणितेऽष्टोत्तरशतं । पुनस्तत्रैव क ४ । वे २ । यो ९ । गुणिते द्वासप्ततिः । अवेदभागे क ४ । यो ९ । गुणिते षटूत्रिंशत् । अक्रोषभागे क ३ । यो ९ । गुण सप्तविंशतिः । अमानभागे क २ । यो ९ । गुणितेऽष्टादश । अमायभागे क १ । यो ९ । गुणिते नव । मिलित्वा सत्यप्रद्विशती । सूक्ष्मसाम्पराये क १ । यो ९ । गुणिते नव । उपशान्तकषाये योगभेदेन नव । क्षीणकषायेऽपि नव । सयोगे सप्त । अयोगे प्रत्ययशून्यं ॥ ७९६ ॥ उक्तभंगानाह ध्रुवगुण्यमपूर्वकरणांत क्रमशो मिथ्यादृष्टौ प्रागुक्तं । सासादने चतुविंशत्यप्राष्टादशशती । मिश्र मिथ्यादृष्टियो पेदु पोदपुरिदं सासादनादिगळोल पेव्वपरु : सासादनंगे ध्रुवगुण्यंगळ चतुव्विशत्युत्तराष्टादश शतमक्कुं । १८२४ ॥ मिश्रनोऴ चत्वारिंशवुत्तरचतुर्द्दशशतमकुं । १४४० ॥ असंयतनोळ अशीत्युत्तर षोडशशतकमवकुं । १६८० ॥ वेश १५ उक्क भंगोंको कहते हैं ध्रुव गुण्य अपूर्वकरण पर्यन्त क्रमसे मिथ्यादृष्टीमें तो पूर्वोक है । सासादनमें अठारह Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only ܀ अनिवृत्तिकरण के सवेद भागमें चार कषाय, तीन वेद, नौ योगों को परस्परमें गुणा करनेपर एक सौ आठ हुए । यहाँसे अध्रुव गुणकार नहीं है । उसी सवेद भागमें चार कषाय, दो वेद, नौ योगोंको गुणा करनेपर बहत्तर भंग होते हैं। अवेद भागमें चार कषाय और नौ योगोंको परस्पर में गुणा करनेपर छत्तीस भंग होते हैं । क्रोधरहित भागमें तीन कषाय और २५ योगोंका गुणा करनेपर सत्ताईस भंग होते हैं। मान रहित भाग में दो कषाय और नौ योगको गुणा करनेपर अठारह होते हैं। माया रहित भागमें एक कषाय और नो योगों को गुणा करनेपर नौ भेद होते हैं। सब मिलकर अंनिवृत्तिकरण में दो सौ सत्तर भंग होते हैं। सूक्ष्म साम्पराय में कषाय एक और नौ योगोंको गुणा करनेपर नौ भंग होते हैं। उपशान्त कषाय में केवल नौ योग ही होनेसे नौ भंग हैं। क्षीणकषायमें भी नौ भंग हैं। सयोगीमें भी १० योगोंसे ही सात भंग होते हैं। अयोगीमें कोई प्रत्यय नहीं होता || ७९६ ॥ २० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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