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________________ गो० कर्मकाण्डे अनंतानुबंधिरहित कूटदोळं सहितकूटदोळं यथासंख्यमागि द्वासप्ततिशतमं त्रिनवतिशतयुतषष्टिप्रमितंगलं मिथ्यादृष्टियोळ, ध्रुवभंगंगळिवु गुण्यंगळवु । भयद्विकरहित सहित मेकतरयुतंगळे व चतुःकूटगुणितपृथिव्यादिसंयोगजनित त्रिषष्टिभंगंगळवध्रुव भंगगुणकारंगळप्पुवदे ते दोडे अनंतानुबंधिरहित प्रथमकूटदोळ, मिथ्यात्वपंचकमद्रियषट्कं कषायत्रिचतुष्टयं त्रिवेदद्विकद्वय ५ दशयोग ५ । ६ । ४ । ३ । २ । १० । मियं परस्परं गुणिसिदोडेल सासिरदिन्नूरु भंगंगळवु । ७२०० || अनंतानुबंधिसहितकूटदोळु ५। ६ । ४ । ३ । २ । १३ । यिवं परस्परं गुणिसिदोर्ड ओ भत्तुसासिरद मूनरस्वत्तु भंगंगळवु ९३६० ॥ ई एरडुं राशिगळं कूडिदोर्ड पदिनारुसा सिर देनूरश्वत्तु ध्रुव गुण्यभंगंगळ मिथ्यादृष्टिगगवु १६५६० ॥ इल्लि त्रैराशिकं माडल्पडुगु । मोदु ध्रुवभंगक्कध्रुवभंगंगळु त्रिषष्टिप्रमितंगळागलुमिनितु ध्रुवभंगंगनितध्रुवभंगंगळप्पुर्व दिंतु त्रैराशिक माडि १० प्र १ । फ ६३ | इ १६५६० | बंद लब्धमुमिनितक्कु १६५६० । ६३ ।। मतमोदनंतानुबंधिरहितसहित कूटद्विकक्किनितागुत्तं विरला द्विकचतुष्टयक्के नितु भंगंगळप्पुवे दितिल्लियुमो त्रैराशिकदिदं नाल्कुगुणाकारमक्कु | १६५६० । ६३ | ४ || मिश्रं परस्परं गुणिसिदोडे मिथ्यादृष्टियोळु सव्वं प्रत्ययभंगंगळrg | अवं नात्वत्तों दु लक्षमुमेप्पत्तमूरु सासिरद नूरिप्पत्तप्पु । ४१७३१२० ॥ सासादनं अनंतानुबंधिसहित कूटंगळे यप्पुदरिदं प्रथमकूटवोळ इंद्रियंगळारु । कषायगुणकारंगळु नाल्कु । वेद१५ गळु मूरु । द्विकद्वययोंगंगळ, पतेरडु ६ । ४ । ३ । २ । १२ । इवं परस्परं गुणिसिदोडे सासिरदेळ नूरिप्प टप्पुवु । १७२८॥ मत्तं सासादनंग वैक्रियिक मिश्रकाययोगदोळु षंडनेदमिल्लेर्क दोडे ११४४ मिथ्यादृष्टी ध्रुवभंगा अनन्तानुबन्ध्यूनकूटे सप्तसहस्रद्विशती तद्युतकूटे खलु षष्टयग्रनवसहस्रत्रिशती । कायभंगवजित मिथ्यात्वादिसंख्यांकेषु परस्परं गुणितेषु तत्प्रमाणस्य सम्भवात् । उभये मिलित्वा षष्ट्य प्रपंचशतषोडशसहस्री गुण्यं, एकैकं प्रतिभयद्विकजोभय कूटचतुष्कं कायभंगजत्रिषष्टिश्वस्तोत्यनेन ६३ | ४ | अध्रुवगुण२० कारण गुणितं सर्वप्रत्ययभंगा विशत्यग्रकशत त्रिसप्ततिसहस्रकचत्वारिशल्लक्षाणि भवन्ति ४१७३१२० । सासादने प्रथमकूटे षडिद्रियचतुष्कषायजाति त्रिवेदद्विकद्वादशयोगेषु परस्परं गुणितेष्वष्टाविंशत्यग्र सप्तदशशती, वैक्रियिक मिथ्यात्व आदिकी संख्याको परस्पर में गुणा करनेपर जो प्रमाण होता है वही भंगोंका प्रमाण है । अतः मिथ्यादृष्टि में अनन्तानुबन्धीरहित कूटोंमें पाँच मिध्यात्व, छह इन्द्रिय, चार कषायत्रिक, तीन वेद, हास्य और शोकका दो युगल, दस योग ५६x४X३X२x१० २५ को परस्पर गुणा करने से बहत्तर सौ होते हैं। अनन्तानुबन्धी सहित कूट में पाँच मिथ्यात्व, छह इन्द्रिय, चार कषाय, तीन वेद, हास्य शोक दो युगल, तेरह योग ५ x ६× ४×३×२×१३ को परस्पर में गुणा करनेसे तिरानबे सौ साठ होते हैं। दोनोंको मिलानेपर सोलह हजार पाँच सौ साठ तो ध्रुव गुण्य हुए। तथा एक भय जुगुप्सा रहित, एक भय सहित, एक सासहित एक भय जुगुप्सा सहित ये चार भंग होते हैं। तथा कार्याहिंसा के तेरसठ भंग ३० होते हैं। ये चार और तेरसठ अध्रुव गुणकार हैं । अतः उक्त ध्रुव गुण्यको चार और तेरसठ से गुणा करनेपर मिध्यादृष्टि में सब प्रत्ययोंके भंग इकतालीस लाख तिहत्तर हजार एक सौ बीस हैं। सासादन में छह इन्द्रिय, चार कषाय, तीन वेद, दो युगल, वैक्रियिक मिश्र बिना बारह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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