SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गो० कर्मकाण्डे केवलिगुणस्थानदोळु सत्वकरणमुमुदयकरणमुमेरडेयप्पुवु ॥ णवरि विसेसं जाणे संकममवि होदि संतमोहम्मि । मिच्छस्स य मिस्सस्स य सेसाणं णस्थि संकमणं ॥४४३॥ नविन विशेषं जानीहि संक्रमोपि भवत्युपशांतमोहे । मिथ्यात्वस्य च मिश्रस्य च शेषाणां ५ नास्ति संक्रमणं॥ उपशांतकषायगुणस्थानदोळ 'विशेषमुंटप्पुदवावुर्वे बोर्ड मिथ्यात्वमिश्रप्रकृतिगळे रउक्के संक्रमणकरणमंट ते दोडे मिथ्यात्वद्रव्य मुमं मिश्रप्रकृतिद्रव्यमुमं सम्यक्त्वप्रकृतिस्वरूपमागि मापनप्पुरिदं शेषप्रकृतिगळ्गे संक्रमणकरणं पोरगागि षट्करणंगळे यप्पुवु। संदृष्टि : मि | सामि व्युच्छि •••••• करण | १० १० १० १०| करण | असत्व ३ अपूर्वकरणनोळु उपशमनिपत्तिनिकाचनंगळं मूलं व्युच्छित्तियक्कु । अनिवृत्तिकरणनोळं १० सूक्ष्मसांपरायनोळं व्युच्छित्तिशून्यमक्कुं । उपशांतकषायनोळ मिथ्यात्वमिभंगळ्ये संकमणमंटप्पुसंक्रमकरणं बिना षडेव सयोगपयंतं भवति । तत उपर्ययोगे सत्त्वोदयकरणे द्वे एव ॥४४२।। उपशांतकषाये विशेषोऽस्ति । स कः ? मिथ्यात्वमिश्रयोरेव संक्रमणमस्ति तद्व्यस्य सम्यक्त्वप्रकृतिरूपेण करणात् । शेषप्रकृतीनां संक्रमकारणं विना षडेव । अपूर्वकरणे उपशमनिपत्तिनिकाचनत्रयं व्युच्छित्तिः, करण होते हैं। उनमें से भी सयोगी पर्यन्त संक्रमके बिना छह ही करण होते हैं। उससे १५ ऊपर अयोगीमें सत्त्व और उदय दो ही करण होते हैं ।।४४२॥ किन्तु उक्त कथनमें विशेष यह है कि उपशान्त कषाय गुणस्थानमें मिथ्यात्व और मिश्र इन दोनोंका संक्रमण भी होता है, इनके परमाणुओंको सम्यक्त्व मोहनीयरूप परिणमाता है। शेष प्रकृतियों में संक्रमके बिना छह ही करण होते हैं। इस तरह अपूर्वकरणमें १. म मुंटदावुदें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy