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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका [ इंतु भगवदर्हत्परमेश्वर चारुचरणारविंदद्वंद्व बंदनानंदितपुण्यपुंजायमानश्रीमद्रायराजगुरुमंडलाचार्य्यं महावादवादीश्वररायवादिपितामह सकल विद्वज्जनचक्रवत्त श्रीमदभयसूरि सिद्धांतचक्रवत्तिश्रीपादपंकजरजोरंजितललाटपट्टे श्रीमत्केशवण्ण विरचितगोम्मटसार कर्णाटवृत्तिजीवतत्वप्रदीपिकयो कर्मकांड पंचभागहार द्वितीयचूलिकाधिकारं निरूपिसल्पट्टुवु ॥ ] अनंतरं दशकरण तृतीयचूलिकेयं चतुर्द्दशगाथासूत्रंगलिंदं पेळलुपक्रमिसि तदादियो निजश्रुतगुरुगळं नमस्कारमं माडिदपं । जस्स य पायपसाएणणंतसंसारजलहिमुत्तिष्णो । वीरिंददिवच्छो णमामि तं अभयणंदिगुरुं । । ४३६ । ६७३ यस्य च पादप्रसादेनानंतसंसारजलधिमुत्तीर्णो । वीरेंद्रणं दिवत्सो नमामि तमभयणंदिगुरुं ॥ आवनानो गुरुविन पादप्रसाददिदं वीरेंद्रणंविवत्सं संसारजलधियनुत्तरिसिवनं तप्प - १० भयनंदिगुरुवं नमस्करिसुर्वे । बंधुक्कड् ढणकरणं संकममोकड्दुदीरणा सत्तं । उदयुवामणिधत्ती णिकाचणा होंति पडिपयडी ॥४३७॥ बंधोत्कर्षण करणं संक्रमापकर्षणोदीरणासत्त्वमुदयोपशमनिधत्तिनिकाचना भवंति प्रति प्रकृति ॥ बंधकरण मुमुत्कर्षणकरण मं संक्रमणकरणम् अपकर्षणकरण मुमुदीरणाकरणम् सत्वकरणम्मुदयकरणमुमुपशमकरणम्' निधत्तिकरणम् निकाचनकरणमुर्म किंतु वशकरणंगळ प्रत्येकमेकैकप्रकृतिगळवु । २ ख ।।४३० - ४३५॥ इति पंचभागहाराख्या द्वितीयचूलिका व्याख्याता । अथ दशकरणचूलिकां चतुर्दशगाथासूत्रैर्वक्तुमुपक्रममाणस्तदादी निजश्रुतगुरुं नमस्यति - यस्य श्रुतगुरोः पादप्रसादेन वीरेंद्रनंदिवत्सः अनंतसंसारजलधिमुत्तीर्णः तमभयनंदिगुरुं नमामि ॥४३६ ॥ बंघः उत्कर्षंणं संक्रमोऽपकर्षणमुदीरणा सत्त्वमुदयः उपशमो निघत्तिनिष्का चनेति दश करणानि प्रकृति प्रकृति भवंति ॥४३७॥ ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only १५ आयाम प्रमाण अधिक है, उससे उस अनुभागकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण अनन्त- २५ गुण है। इस प्रकार पाँच भागहारोंके अल्पबहुत्व के प्रसंगसे दूसरोंके भी अल्पबहुत्वका कथन किया ||४३०-४३५॥ २० पंचभागहार चूलिका समाप्त | जिस शास्त्रगुरु के चरणोंके प्रसादसे वीरनन्दि और इन्द्रनन्दिका शिष्य मैं नेमिचन्द्राचार्य अनन्त संसार समुद्रके पार हो गया उस अभयनन्दि गुरुको नमस्कार करता हूँ ||४३६ || बन्ध, उत्कर्षण, संक्रम, अपकर्षण, उदीरणा, सत्त्व, उदय, उपशम, निधत्ति, निकाचना ये दस करण प्रत्येक प्रकृतिमें होते हैं ||४३७॥ ३० १. ब प्रति प्रकृति भ । www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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