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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १०४९ स्थानंगळ नवसप्तप्रमितंगळप्पुवु । एकत्रिशबंधाधिकरगदोछ एकैकमुदयसत्त्वस्थानंगठप्पुवु । एकप्रकृतिबंधाधिकरणदोळ दयसत्त्वंगळुमेकाष्ट स्थानंगठप्पुवु । उपरतबंधाधिकरणदो दशदशोदयसत्त्वस्थानंगळप्पुवु नियमदिदं । संदृष्टि : | बं | २३ । २५ । २६ । २८ । २९ । ३० | ३१ । १ ।। उ। ९ । ९ । ९ । ८ । ९ । ९ | १ | १९१० स । ५ । ५ । ५ । ४ । ७ । ७ । १ अनंतरमुक्तोदयसत्त्वसंख्याविषयस्थानंगळ पेळ्दपरु : तियपण छवीसबंधे इगिवीसा देक्कतीस चरिमुदया। बाणउदीणउदिचऊ सत्तं अडवीसगे उदया ।।७४२॥ त्रिपंचषड्विंशतिबंधे एकविंशतिरेकत्रिशच्चरमोदयः। द्वानवतिन्नवतिचतुःसत्त्वं अष्टाविशता उदयाः॥ त्रिपंचषड्विंशतिबंधाधिकरणोळ पेळ्द नवोदयस्थानंगळे कविंशति मोदलागि एकत्रिंशत्प्रकृतिस्थानं चरमोदयस्थानमक्कुं। द्वानवतियु नवत्यादिचतुःस्थानंगळ मधुवु । अष्टाविंशतिबंधाधिकरणदोळुदयंगळ पेळल्पडुगुं : पुव्वंव ण चउवीसं बाणउदिचउक्कसत्तमुगुतीसे । तीसे पुव्वं उदया पढमिल्लं सत्तयं सत्तं ।।७४३॥ पूर्ववन्न चतुविशतिनिवतिचतुष्कसत्त्वमेकान्नत्रिंशत्सु । (त्रिंशत्सु) पूर्ववदुदयाः प्रथमतनसप्तकं सत्त्वं ॥ १५ उदयस्थानमेकं सत्त्वस्थानमेकं । एकके उदयस्थानमेकं सत्त्वस्थानान्यष्टौ । उपरतबन्धे दशदशोदयसत्वस्थानानि नियमेन भवन्ति ॥७४०॥७४१॥ त्रिपंचषडग्रविशतिकबन्धेषूदयस्थानान्येकशितिकादीन्येकविंशकांतानि नव । सत्त्वस्यानं द्वानवतिक नवतिकादिचतुष्कं च ।।७४२॥ बन्धस्थानमें उदयस्थान नौ और सत्त्वस्थान सात हैं । इकतीसके बन्धस्थानमें उदयस्थान एक २० और सत्त्वस्थान एक है। एकके बन्धस्थानमें उदयस्थान एक सत्त्वस्थान आठ हैं। बन्धरहित स्थानमें दस उदयस्थान और दस सत्त्वस्थान नियमसे होते हैं। इसका आशय है कि जिस जीवके जिस कालमें इतनी-इतनी प्रकृतियोंका बन्ध होता है उस काल में उस जीव के किसीके कोई, किसीके कोई, इस तरह नाना जीवोंकी अपेक्षा उक्त उदयस्थान और सत्त्वस्थान पाये जाते हैं ॥७४०-७४१।। वे कौन-से हैं ? यह कहते हैं___ तेईस, पच्चीस, छब्बीसके बन्धस्थानोंमें इक्कीससे इकतीस पर्यन्त नौ उदयस्थान हैं। सत्त्वस्थान बानबे और, नब्बे आदि चार हैं ।।७४२।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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