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________________ १००४ गोकर्मकाण्डे बंधोदयस्थानद्वयाधारदोल सत्त्वस्थानादेयमुं बंधसत्त्वस्थानद्वयाधारदोळुदयमादेयमु दयसत्त्वस्थानाधारदोळ बंधस्थानादेयमुमितु द्विस्थानाधारमेकमादेयमुं ज्ञातव्यमक्कुंब उ | बंस | उस | स | उ | बं। अनंतरमी त्रिप्रकारंगळोळ मोदल बंधोदयाधारसत्त्वादेय प्रकारमं गाथाषट्कदिदं पेळ्दपरु : बावीसेण णिरुद्धे दसचउरुदये दसादिठाणतिये । अट्ठावीसतिसत्तं सत्तदये अट्ठवीसेव ॥६७४॥ द्वाविंशत्या निरुद्ध दशचतुरुदये दशादिस्थानत्रितये। अष्टाविंशति त्रिसत्वं सप्तोदयेऽष्ट विशतिरेव ॥ द्वाविंशतिबंदिदोडने निरुद्धनागुत्तिई जीवनोळ उदयिसुत्तिई दशादिचतुरुदयस्थानंगळोळ दशायुदयस्थानत्रयदोळ अष्टाविंशत्यादित्रिस्थानसत्वमक्कुं। आ सप्तप्रकृत्युदयस्थानदोळष्टाविंशतिसप्तसत्वस्थानमोदेयक्कुं। बं २२ । उ १०।९। ८ स २८। २७ । २६ । मत्तं बंध २२ । उ ७। स२८॥ इगिवीसेण णिरुद्धे णवयतिये सत्तमट्ठवीसेव । सत्तरसे णवचदुरे अडचउतिदुगेक्कवीसंसा ॥६७५॥ एकविंशत्या निरुद्ध नवत्रये सत्वमष्टाविंशतिरेव । सप्तदशसु नवचतुर्वष्ट चतुस्त्रिद्वयेक १५ विशतिरंशाः॥ १० बन्धोदये सत्त्वं बन्धसत्त्वे उदय उदयसत्त्वे बन्ध इति त्रिधा द्विस्थानाधारकस्थानाधेयो ज्ञातव्यः॥६७३॥ तत्र प्रथमं प्रकरणं गाथाषट्केनाह द्वाविंशतिकबन्धेन निरुद्ध जीवे सम्भविषु दशकादिचतुरुदयस्थानेषु मध्ये सत्त्वमष्टाविंशतिकादित्रयं । सप्तकेऽष्टाविंशतिकमेव ॥६७४॥ बन्धस्थान और उदयस्थानमें सत्त्वस्थान, बन्धस्थान और सत्त्वस्थानमें उदयस्थान, उदयस्थान और सत्त्वस्थानमें बन्धस्थान इस प्रकार दो स्थानोंको आधार और एक स्थानको आधेय बनाने के तीन प्रकार हैं ॥६७३।। विशेषार्थ-इतनेका बन्ध और उदय जिसके होता है उसके इतनेका सत्त्व पाया जाता है । यहाँ बन्ध उदय आधार और सत्त्व आधेय होता है। जिसके इतनेका बन्ध और २५ इतनेका सत्त्व होता है उसके इतनेका उदय होता है। यहाँ बन्ध सत्त्व आधार और उदय आधेय होता है। जिसके इतनेका उदय और इतनेका सत्त्व होता है उसके इतनेका बन्ध पाया जाता है । यहाँ उदय सत्त्व आधार और बन्ध आधेय होता है। इस तरह तीन प्रकार होते हैं ॥६७३॥ इनमें से प्रथम प्रकारको छह गाथाओंसे कहते हैं बाईसके बन्ध सहित जीवके सम्भव दस आदि चार उदयस्थान हैं। उनमें से दस आदि तीनमें तो सत्त्व अठाईस आदि तीनका है। किन्तु सातके उदयस्थानमें सत्त्व अट्ठाईसका ही है ॥६७४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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