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________________ ९९० गो० कमकाण्डे वेदनोपदोळे टुं ८ । गोत्रदोळ ७। आयुष्यदोळु विसदृशभंगंगळ नाल्कु गतिगळायुष्यंगळु नाल्करोळं क्रमदिदं पंच नव नव पंच भंगंगळप्पुवु ॥ अनंतरं मोहनीयत्रिसंयोगभंगंगळं पेळ्दपरु : मोहस्स य बंधोदयसत्तट्ठाणाण सव्वभंगा हु । पत्तेउत्तं व हवे तियसंजोगेवि सव्वत्थ ॥६५२॥ मोहस्य च बंधोदयसत्त्वस्थानानां सर्वभंगाः खलु प्रत्येकोक्तवद्भवेत् त्रिसंयोगेपि सर्वत्र ॥ मोहनीयकर्मक्कयं बंधोदयसत्त्वस्थानंगळ सर्व भंगंगळु त्रिसंयोगदोळं सर्वत्र प्रत्येक बंधोदयसत्त्वस्थानंगळोळु पेन्दंते भंगंगळप्पुवंतागुत्तं विरलु गुणस्थानदोळु बंधोदयसत्त्वस्थान १० संख्ययं पेळ्दपरु : अट्ठसु एक्को बंधो उदया चदुतिदुसु चउसु चत्तारि । तिणि य कमसो सत्तं तिण्णेगदु चउसु पणगतियं ॥६५३॥ अष्टस्वेको बंधः उदयाश्च वारस्त्रयो द्वयोश्चतुषु चत्वारस्त्रयश्च क्रमशः सत्वं त्रीण्येकं द्वेचतुर्यु पंचत्रिकं॥ अणियट्टी बंधतियं पण दुग एक्कारसुहुमउदयंसा । इगि चत्तारि य संते सत्तं तिण्णेव मोहस्स ॥६५४।। अनिवृत्तेब्बंधत्रयं पंच द्विकैकादशसूक्ष्मोदयांशाः । एक चत्वारश्च शांते सत्वं त्रीण्येव मोहस्य ॥ तेषु खलु विसदृशभंगा वेदनीयेऽष्टौ भवन्ति । गोत्रे सप्त, चतुष्कायुस्सु क्रमेण पंच नव नव पंच ॥६५१॥ १० अथ मोहनीयत्रिसंयोगभंगानाह ___ मोहनीयस्य बन्धोदयसत्त्वस्थानसर्वभंगाः खलु त्रिसंयोगेऽपि सर्वत्र प्रत्येकोक्तवद्भवन्ति ॥६५२॥ अथ गुणस्थानेषु स्थानसंख्यामाह उन पूर्वोक्त भंगोंमें अपुनरुक्त मूल भंग वेदनीयमें आठ, गोत्रमें सात, चारों आयुमें क्रमसे पाँच, नौ-नौ पाँच होते हैं ॥६५१।। अब मोहनीयके त्रिसंयोगी भंग कहते हैं मोहनीयके बन्ध-उदय-सत्त्व स्थानोंमें सब भंग जैसे पहले पृथक् बन्ध उदयसत्त्वका कथन करते हुए कहे थे, वैसे ही बन्ध-उदय-सत्त्वके संयोगरूप त्रिसंयोगमें भी होते हैं ॥६५२॥ आगे गुणस्थानोंमें मोहनीयके स्थानोंकी संख्या कहते हैं For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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