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________________ गो० कर्मकाण्डे पेळपट्टुदरिदं । त्रिभागशेषमागुत्तं विरलायुब्बंधम माळकुम बेकांत मिल्लों दुदु बंधप्रायोग्यमक्कु रिपडुगुं ॥ ९८४ एवमबंधे बंधे उवरदबंधेवि होंति भंगा हु । raateese भवे एक्काउं पडि तये णियमा ! | ६४४ || एवमबंधे बंधे उपरतबंधेपि भवंति भंगाः खलु । एकस्यैकस्मिन्भवे एकायुः प्रति त्रयो नियमात् ॥ यिती प्रकारदिदं आयुब्बंधदोळमबंधदोलमुपरतबंधदोळं स्फुटमागि भंगंगळप्पुवु । एकस्य ओgarh एकस्मिन् भवे ओंदु भवदोळु एकायुः प्रति ओदायुष्य मं कुरुत्तु त्रयो भंगाः नियमात् नियर्मादिदं मूरु भंगंगवु । अंतागुत्तं विरल त्रैराशिकं माडल्पडुगुमर्व तें दोडे नरकदेवगतियों१० दोंदायुष्यक्के अबंध बंध उपरतबंधमेंब मूरुं भंगंगलांगुत्तं विरलेरडायुष्यक्के नितु भंगंगळपुर्व त्रैराशिकदिदं प्र १ । फ ३ । इ २ | बंद लब्धं प्रत्येकमारारु भंगंगळप्पुवु । नरक ६ । सुर ६ । तिग्मनुष्यगतिगोलो दो दायुष्यंगळगे मूरु मूरु भंगंगळागुत्तं विरलु नाल्कु नात्कायुगनितु गंगळपूर्व दितु त्रैराशिकं माडल्पडुत्तिरलु प्र १ । फ ३ । इ४ | बंद लब्ध भंगंगळु तिग्मनुष्यगतिगळ प्रत्येकं पन्नेरडु पन्नरडु भंगंगळप्पु । ति १२ । म १२ । यितु नरकदेव१५ गतिगळोळ बंधयोग्यंगळप्प तिग्मनुष्यायुष्यंगळगं । तिय्यग्मनुष्यगतिगळोळ बंधयोग्यंगळप्प नाकु नाल्कायुष्यंगळगं भंगसंदृष्टि रचने : नरकगति बं | ० ति । उप उन न न स | १ २ २ म उ ० न न | न १ | २ | २ | Jain Education International तिथ्यग्गति दे उ ० | ति | उ |० म उ ति | ति | ति | ति | ति | ति | ति | ति| ति| ति | ति|ति १ | २ | २ | १| २ | २|१ २ | २ | १|२| २ ० | न | उ उदीयमानायुपवर्तनस्यैव कदलीघाताभिधानात् । त्रिभागशेषे त्रिभागशेषे सत्यायुर्वघ्नात्येकांतो नास्ति तत्र तत्र योग्यतास्तीति ज्ञातव्यं ||६४३ || एवमुक्तरीत्यायुर्बन्धे अबन्धे उपरतबन्धे च स्फुटं एकजीवस्यैकभवे एकायुः प्रति त्रयो भंगा नियमा२० द्भवन्ति ॥ ६४४॥ o तथा प्रत्येक तीसरा भाग शेष रहनेपर आयुका बन्ध करता ही है ऐसा एकान्त नहीं है तीसरा भाग शेष रहनेपर आयुबन्धकी योग्यता होती है। उस कालमें आयु बँधे, न भी बँधे । किन्तु विभाग के सिवाय अन्यत्र आयुबन्ध नहीं होता, यह नियम है || ६४३ || इस तरह पूर्वोक्त रीति के अनुसार एक जीवके एक भत्रमें एक आयुके नियमसे तीन २५ भंग (भेद ) होते हैं—बन्ध, अबन्ध, उपरतबन्ध । वर्तमान में जहाँ परभव सम्बन्धी आगामी आयुका बन्ध होता है और एक मुज्यमान तथा एक बध्यमान इस तरह दो आयु पाई जाती है उसे बन्ध कहते हैं। जो परभव सम्बन्धी आयुका बन्ध न पहले हुआ और न वर्तमान में हो रहा है वहाँ अबन्ध है । वहाँ एक भुज्यमान आयु ही पायी जाती है । जहाँ परभव सम्बन्धी आयुका बन्ध पूर्व में हो चुका है, वर्तमान में नहीं हो रहा वहाँ पूर्वबद्ध और 1 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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