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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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अनंतरं बंधोदय सत्व संयोगदोळ भंगंगळं पेब्दपरु :
मूलुत्तरपयडीणं बंधोदयसत्तठाणभंगा हु ।
मणिदा हु तिसंजोगे एत्तो भंगे परूवेमो ॥६२७।। मूलोत्तरप्रकृतीनां बंधोदयसत्वस्थानभंगाः खलु । भणिताः खलु त्रिसंयोगे इतो भंगान् प्ररूपयामः॥
मूलोतरप्रकृतिगळ बंधोदयसत्वस्थानभंगंगळु पेळल्पटुवु। स्फुटमागि। इतः प्रति यिल्लिदं मेले त्रिसंयोगे बंधोदयसत्वसंयोगदोळु भंगान् भंगंगळं प्ररूपिसिदपेवदेत दोड:
द्वानवतिकनवतिके द्वे । सर्वसासादनानां नवतिकमेव ॥६२६।।
मलोत्तरप्रकृतीनां बन्धोदयसत्त्वस्थानभंगाः खलु भणिताः । इतोऽग्रे त्रिसंयोगे भंगान प्ररूपयामः खलु ॥६२७॥ तद्यथा
चार पृथिवियोंके नारकीके बानबे और नब्बे दो ही सत्त्वस्थान हैं। सब सासादन गुणस्थानवी जीवोंके एक नब्बेका ही सत्त्वस्थान होता है ॥६२६।।
मूल प्रकृति और उत्तर प्रकृतियोंके बन्ध उदय और सत्त्वरूप स्थान तथा भंग कहे। यहाँसे आगे बन्ध, उदय, सत्त्वके त्रिसंयोगमें स्थान और भंगोंको कहेंगे ॥६२७॥
वही कहते हैं
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