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गो० कर्मकाण्डे आहारकदोळु त्रिद्विनवतिस्थानद्वयंगळप्पुवु। आ ९३ ॥ ९२ ॥ देवकळोळु सौधर्माविगळोळु प्रथमतन चतुःस्थानंगळप्पुवु ।९३३९२१९११९० । अनंतरं भवनत्रयभोगभूमिजरोळं सत्वस्थानंगळं पेळदपरु :
बाणउदि णउदिसत्ता भवणतियाणं च भोगभमीणं ।
हेट्ठिमपुढविचउक्कभवाणं च य सासणे णउदी ॥६२६॥ द्वानवति नवतिसत्वं भवनत्रयाणां च भोगभूमिजानामधस्तनपत्थ्यिचतुष्कभवानां च च सासादने नवतिः॥
भवनत्रयविविजरुगळ्गे द्वानवतियं नवतियं सत्वमक्कुं। सर्वभोगभूमिगळ मनुष्यतिय्यंचरुगळ्गेयुं द्वानवति नवति द्विस्थानसत्वमक्कुं। भवन ३ । ९२। ९०॥ भो ९२ । ९०॥ अंजने१० मोदल्गोंडु केळगण नाल्कं पृथ्विगळोळाद नारकरुगळ्गेयं द्वानवति नवतिद्वय सत्वमक्कं । ९२ । ९०॥ सर्वसासादनरुगळ्गेल्लं नवतिसत्वस्थानमो देयकुं। सा ९० ॥ संदृष्टि :
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त्रिनवतिकद्विनवतिके द्वे । वैमानिकेष्वाद्यानि चत्वारि ॥६२५॥
सस्वस्थानानि भवनत्रयदेवानां सर्वभोगभूमितिर्यग्मनुष्याणामंजनाद्यधस्तनचतुःपृथ्वीनारकाणां च स्थान होते हैं। और तीर्थंकर रहित अयोगीमें उन्न्यासी, सत्तहत्तर तथा तीर्थकर रहित १५ अयोगीमें वे दोनों और नब्बे स्थान होते हैं। आहारकमें तिरानबे, बानबे दो सत्त्वस्थान हैं। वैमानिक देवोंमें आदिके चार सत्त्वस्थान हैं ॥६२५॥
भवनत्रिक देवोंके सब भोगभूमिया मनुष्य तियं चोंके और अंजना आदि नीचेकी
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