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________________ भंगंगळ नूरे भत्ते टु ३० २८८ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका संज्ञिपंचेंद्रियोद्योतयुतैकत्रिशत्प्रकृतिस्थानदोळ नूर नाल्व त्तनालकु मप्पुवु । ३१ प्रमत्तसंयतनोळाहारक शरीरमिश्रदोळ पंचविशति प्रकृतिस्थानमोदु २५ आशरीरपर्य्याप्तियोछु सप्त विशति प्रकृतिस्थानमोदु २७ आनापानपर्य्याप्तियोळष्टाविंशतिप्रकृति १४४ १ १ स्थानमा दु २८ आ भाषापर्य्याप्रियोळ नववंशति प्रकृत्युदयस्थानमों व २९ औबारिकशरीर १ १ १४४ भाषापर्य्याप्तियोळु संस्थानसंहननविहायोगतिस्वरभेदसंजनितचतुश्चत्वारिंवुत्तरैकशतभंगयुतत्रिंशत्प्र - १ कृतिस्थानमुकुं ३० अप्रमत्तसंयतनोळ चतुश्चत्वारिंशदुत्तरेकशतभंग युत्रशत्कृतिस्थानमुवयमक्कु । ३० मपूर्वकरणोपशमंर्ग संस्थानषट्क संहननत्रय विहायोगतिस्वरभेव संजनित द्विसप्ततिभंगत त्रिशत्प्रकृतिस्थानमक्कु ३० मा क्षपकंगे संस्थानषट्क संहनने कविहायोगतिद्वयस्वरद्वयसं जनितचतुव्विशतिभंग युत्रशत्प्रकृत्युदयस्थानमक्कु १४४ ७२ उ मनिवृत्तिकरणनोळं सूक्ष्मसांपरायनोळमक्कुं । अनि ३० ७२ ९५९ उ क्ष क्ष ३० सूक्ष्म - ३० ३० २४ ७२ २४ ३० मी प्रकारविंद२४ उपातिकषायनो द्वासप्ततिभंगयुत त्रिशत्प्रकृतिस्थानमक्कुं । ३० क्षीणकषायनोळ, चतुव्विशति ७२ Jain Education International द्वापंचाशदग्रेकादशशती । देशसंयते त्रिशत्कस्य संज्ञितिर्यग्मनुष्ययोः संस्थान संहननविहायोगतिस्वरप्रकृता अष्टाशीत्यग्रशती । सोद्योतकत्रिंशत्कस्य संज्ञिनः चतुश्चत्वारिंशदग्रशतं । प्रमत्ते आहारकशरीरमिश्रपंचविशतिकस्यैकः । शरीपर्याप्तौ सप्तविंशतिकस्यैकः । आनापानपर्यासावष्टाविंशतिकस्यैकः, भाषापर्याप्तौ नवविंशतिकस्यैकः । त्रिंशत्कस्यौदारिक शरीरभाषापर्याप्तौ संस्थानसंहननविहायोगतिस्वर आश्चतुश्चत्वारिंशदक १५ शतं । अप्रमत्ते त्रिंशत्कस्य तथा तावंतः । उपशमकेषु चतुर्षु प्रत्येकं संस्थानत्रिसंहननस्वरविहायोगतिजा देश संयत गुणस्थान में तीसके संज्ञीतियंचके संस्थान छह, संहनन छह, विहायोगतियुगल और स्वरयुगल से एक सौ चवालीस, इसी प्रकार मनुष्यके एक सौ चवालीस मिलकर दो सौ अठासी भंग हैं। उद्योत सहित इकतीसके संज्ञी पंचेन्द्रियके पूर्वोक्त प्रकार एक सौ चवालीस भंग हैं। प्रमत्त आहारकके शरीर मिश्र में पच्चीसका एक, शरीर पर्याप्ति में सत्ताईसका एक, श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिमें अठाईसका एक, भाषापर्याप्ति में उनतीसका एक भंग है । औदारिक शरीरके भाषा पर्याप्ति सम्बन्धी तीस के छह संस्थान, छह संहनन, विहायोगति युगल, स्वरयुगलसे एक सौ चवालीस भंग हैं । For Private & Personal Use Only १० अप्रमत्तमें तीसके उसी प्रकार एक सौ चवालीस भंग हैं। उपशम श्रेणिके चार गुण- २५ स्थानोंमेंसे प्रत्येकके छह संस्थान, तीन संहनन, स्वरयुगल, विहायोगति युगलसे बहत्तर - क- १२१ २० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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