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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ... २५/२७/२८/२९| ३० । । ३० अपूर्व ३०/३० अनिवृत्ति- ३० । प्रमत्तंगे। । । । अप्रमत्तंगे | १) ११/१११४४ । १४४ करणंगे ७२/२४ करणंगे | सूक्ष्म- । ३० | ३० / उपशांत-| ३० | क्षीण- ३० सयोग |२०|२१|२६/२७/ २८| सांपरायंगे ७२ २४ कषायंगे ७२ कषायंगे केवलिगे ६) ११२ ५९ १८ इंतागुत्तं विरलेकविंशतिस्थानसर्वभंगंगळरुवत्तरोळु तीर्थयुतभंगमोदं कळेदु शेषमो दु[विवरुवत्तुभंगंगळ मिथ्यादृष्टियोळप्पुवु २१ चतुविंशतिप्रकृत्युक्यस्थानवोळिप्पत्तेळ भंगंगळप्पुववनितुं मिथ्यावृष्टियोळप्पुवु २४ पंचविंशतिस्थानभंगंगळु पत्तोंभत्तरोळ आहारकशरीरमिश्रभंगमों व कळेलु शेषपविनंटु भंगंगळ मिथ्यादृष्टियोळप्पुवु २५ षड्विंशतिस्थानभंगंगळुमरुनूरिप्पत्तरोनु सामान्यसमुद्घातकेवलिय संस्थानभेवषड्भंगंगळं कळेदु शेषमरुनूर पदिनाल्कु भंगंगळ मिथ्यावृष्टियोळप्पुवु २६ सप्तविंशतिस्थानंगळ पन्नेरडु भंगंगळोळु आहारतीत्यंसंबंधिभंगंगळेरकं कळेदु शेषपत्त भंगंगळं मिथ्यावृष्टियोळप्पुवु २७ अष्टाविंशतिस्थानभंगंगळ साविरद नूर येपत्तय्वरोळु ११७५ सामान्यसमघातकेवलिय पन्नेरडुमनाहारको दुमनंतु पदिमूरं कळेदु शेष सासिरव नूररवत्तेर भंगंगळु मिथ्यावृष्टियोळप्पुवु २८ नवविंशतिस्थानभंगंगळु साविरवेळ ६१४ . ११६२ एकविंशतिकस्य षष्टी तीर्थजो नेत्येकानषष्टिः । चतुर्विशतिकस्य सप्तविंशतिः । पंचविंशतिकस्यैकानविंशतावाहारकशरीरमिश्रजो नेत्यष्टादश। षड्विंशतिकस्य विंशत्यप्रषट्छरयां सामान्यसमुद्घातके वलिसंस्थानजाः षडनेति चतुर्दशाप्रषट्छती । सप्तविंशतिकस्य द्वादशस्वाहारकतीर्थजो नेति दश । अष्टाविंशतिकस्य पंचसप्तत्यप्रैकादशशत्यां सामान्यसमुद्घातकेवलिनो द्वादश, पाहारकस्यैकश्च नेति द्वाषष्टयकादशशती । wwwwwwwx मिथ्यादृष्टिमें इक्कीसके साठ भंगोंमें तीर्थंकर सम्बन्धी एक भंगके बिना उनसठ भंग हैं। चौबीसके सत्ताईस भंग हैं। पच्चीसके उन्नीस भंगोंमें-से आहारक शरीरमित्र सम्बन्धी ।। एक भंगके बिना अठारह हैं। छब्बीसके छह सौ बीसमें-से सामान्य समुद्घात केवलीके संस्थानजन्य छह भंग बिना छह सौ चौदह हैं। सत्ताईसके बारह भंगोंमें आहारक और तीर्थकरके दो बिना दस भग हैं। अठाईसके ग्यारह सौ पचहत्तरमें-से सामान्य समुद्घात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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