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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १ ११५२ एकत्रिशत्प्रकृतिस्थानदोछु सतीर्थकेवलिय भाषापर्य्याप्तियोळओंदु ३१ संज्ञिपंचेंद्रिय भाषापप्रियोळुद्योतसहितस्थानदो षट्संस्थानषट्संहननयुग्म पंचककृत ३६ । ३२ भंगंगळु सासिरद नूरय्वर्त्तरङ ३१डींद्रियत्रींद्रिय चतुरिन्द्रियासंज्ञि जीवंगलोद्योतयुतस्थानंगळोळ प्रत्येकमेरर्डरडु भंगंगळ संभविसुत्तं विरलु नारकरोळ मेंदु भंगंगळवु ३१ अंतु कूडि एकत्रिंशत्प्रकृतिस्थानवो भाषापर्य्यातियोळ सासिरद नूरखत्तों दु भंगंगळप्पूवु ३१ तीर्थसमुद्यात केव लियोकोदु भंगं पुनरुक्तभंगमक्कुमयोगिके वलियो सतीत्थंरों भत्तरोको दुमतीत्थं रे टरोळोदु भंगंगलप्पु ९८ इंतुक्तस्थानभंगंगळगे संदृष्टि : ११६१ :― १ १ २० २१ २४ २५ २६ २७ २८ २९ ३० ३१ ९। ८ १ ६० २७ १९ ६२० / १२ ११७५ १७६० २९२१|११६१/ १ १ इंति वेल्ल मुमपुनरुक्तभंगंगळप्पुवु । सर्व्वभंगंगळ ७७५८ अनंतरं समुद्घातकेवलिय तीर्थरहितरुगळ भाषापर्य्याप्तियोळ त्रिंशत्प्रकृतिस्थानद चतुविवंशतिभंगंगळं तीर्त्ययुतरोळे कत्रिशत्प्रकृतिस्थानदोळोढुं स्थानमुं पुनरुक्तर्म दु पेदपरु :सामण्णकेवलिस समुग्धादगदस्स तस्स वचि भंगा । तित्थस्सवि सगभंगा समेदि तत्थेक्कमवणिज्जो || ६०६ ॥ सामान्ये केवलिनः समुद्घातगतस्य तस्य वाग्भंगास्तोत्थंस्यापि स्वकभंगौ समाविति तत्रैकमपनेयः ॥ ९५३ एकत्रिशतकानि भाषापर्याप्त सतीर्थ के वलिन्येकं । संज्ञिनि सोद्योतानि तथा द्वापंचाशद ग्रेकादशशती । द्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिषु सोद्योते द्वे द्वे भूत्वाष्टा वित्येक षष्टयग्रैकादशशती ३१ | तीर्थसमुद्वातकेवलिन्येकं १५ ११६१ पुनरुक्तं । अयोग के वलिनि सतीर्थं नवकमेकं अतीर्थाष्टकमेकं ९ । ८ मिलित्वा सर्वाणि ७७५८ ।। ६०३-६०५ ।। तानि पुनरुक्तान्याह — १ । १ तीर्थ सहित समुद्घात केवलीका एक भंग पुनरुक्त है। अयोग केवली में तीर्थंकर सहित नौका एक भंग है। तीर्थंकर रहित आठका एक भंग है। इस प्रकार सब मिलकर सात हजार सात सौ अठावन भंग होते हैं ||६०३ - ६०५ ॥ पुनरुक्त भंगोंको कहते हैं Jain Education International ५ इकतीस के स्थान में भाषा पर्याप्ति में तीर्थंकर केवलीके एक है। उद्योत सहित संज्ञी पंचेन्द्रिय के पूर्वोक्त प्रकारसे ग्यारह सौ बावन भंग हैं। उद्योत सहित दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रियके दो-दो भंग होनेसे आठ होते हैं। इस प्रकार इकतीसके स्थान में १+११५२+८=११६१ ग्यारह सौ इकसठ भंग होते हैं । २० For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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