SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 323
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 9 ५७६ रस कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ९५१ तीर्थसमुद्घातकेवलिय शरीरपाप्तियोलो तु २९ संज्ञिपंचेंद्रियोल योतयुतशरीरपाप्रियोळ मुंपळवंतय्नूरप्पतारु २९ द्वौद्वियत्रींद्रियचतुरिद्रियासंज्ञिगळोळ. शरीरपर्याप्तियोळ - द्योतयुतदोळ प्रत्येकमेरडे रडु भंगंगळप्पुरिदर्भ टु २९ मत्तं निरतिशयसमुद्घातकेवलियोलानापानपर्याप्तियोळ, संस्थानविहायोगतिकृत भंगंगळ, २९ मनुष्यसंज्ञिपंचेंद्रियंगळोळ प्रत्येकमानापानपर्याप्तियोळ संहननसंस्थानसुभगादेययशस्कोतिविहायोगतिकृत-३६ । १६ । अय्नूरेप्पत्तारु ५ भंगंगळागुत्तं विरलु एरडरोळ सासिरदनूरय्वतरडु २९ द्वीवियत्रींद्रियचतुरिंद्रियासंशिगळोळानापान पर्याप्तियो द्योतरहित स्थानदोळ, प्रत्येकमेरडेरडु भंगंगळप्पुरिदमे टु २९ मत्तं देवाहारकनारकरुगळ भाषापर्याप्तियोळ, प्रत्येकमेकैकस्थानमप्पुरिवं मूरु। २९ अंतु नवविंशतिप्रकृतिस्थानदोळ सर्वभंगंगळु सासिरदेळ. नूररुवतु भंगंगळप्पुवु २९ त्रिंशत्प्रकृतिस्थानदोळ भंगंगळ पेळल्पडुगुं : ११५२ १७६० १० A NAVANA नवविंशतिकानि शरीरपर्याप्ती तीर्थसमुदपातकेवलिन्येकं । संज्ञिनि प्राग्वत सोद्योतषट्सप्तत्यग्रपंचशती। द्वित्रिचतुरिंद्रियासंज्ञिषु सोद्योते द्वे द्वे भूत्वाष्टो । उच्छ्वासपर्याप्तो निरतिशयसमुद्घातकेवलिनः संस्थानविहायोगतिकृतानि द्वादश । मनुष्ये संज्ञिनि प्रत्येकं प्राग्वत् षट्सप्तत्यधिकपंचशती भूत्वा द्वापंचाशदकादशशती। द्वित्रिचतुरिद्रियासंज्ञिष्वनुद्योते द्वे द्वे भूत्वाष्टो। भाषापर्याप्ती देवाहारकनारकाणामेकैकं भूत्वा पीणोति षष्टयग्रसप्तदशशती २९ । १७६० ___ उनतीसके स्थानमें शरीर पर्याप्तिकालमें तीर्थकर समुद्घात केवलीके एक भंग है। संज्ञी तिथंच उद्योत सहितके पूर्वोक्त प्रकारसे पाँच सौ छिहत्तर भंग हैं। उद्योत सहित दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय, 'चौइन्द्रिय, असंज्ञीके दो-दो भंग होनेसे आठ भंग हैं। उच्छ्वास पर्याप्तिमें निरतिशय समुद्घात केवलीके छह संस्थान और विहायोगति युगलके बदलनेसे बारह भंग होते हैं। मनुष्य और संज्ञी पंचेन्द्रियमें पूर्वोक्त प्रकारसे प्रत्येकके पांच सौ छिहत्तर २० भंग होनेसे ग्यारह सौ बावन होते हैं। उद्योत रहित दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञीके दो-दो भंग होनेसे आठ भंग होते हैं । भाषा पर्याप्तिकालमें देव आहारक नारकीके एक-एक भंग होनेसे तीन भंग होते हैं। इस प्रकार उनतीसके स्थानमें १+५७६+८ + १२+ ११५२+८+३= १७६० सतरह सौ साठ भंग होते हैं। क-१२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy