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________________ ९५० गो० कर्मकाण्डे रड्डु भंगंगळप्पुर्वारं वं नालकु २७ अंतु सप्तविंशति प्रकृत्युवयस्थानवोळ पन्नेरडे भंगंगळप्पुवु २७ * १२ १५ अष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानबोळ, भंगंगळ पेळल्पडुगुं : निरतिशयसमुद्घातकेवलियशरीरपर्याप्तियोळ विहायोगतिद्वय गुणित संस्थान १२ ३६ । १६ । ११५२ षट्कमरिवं पनेर २८ मनुष्यनो संज्ञिपंचंद्रियदोळ प्रत्येकं शरीरपर्थ्याप्तिकालबोट, ५ सुभगादेययशस्कीतिविहायोगतिचतुर्द्वय गुणितसंस्थान संहननषट्कमरि अप्तुरप्प तालु मेरडरोळ सासिरद नूरय्वर्त्तरडवु २८ द्वींद्रियत्रींद्रियचं तुरिद्रियासंज्ञिपंचेंद्रियंगळोळ, शरीरपर्य्याप्तियोळ, प्रत्येकर्म रड रडुभंरांगळे यप्पुर्वारखमा नाल्करोळ मेंदु २८ मत्तं देवाहारक नारकरुगळोळानापानपर्य्याप्तियोळ. प्रत्येकमेकैकभंगंगळप्पुदरिदं मूरु २८ कूडि अष्टाविंशतिप्रकृतिस्थानदोळ सभंगंगळ, सासिरव नूरप्पत्तय्ववु । २८ नववंशतिप्रकृति१० स्थानवोळ भंगंगळ पेळल्पडुगुं । ८ ३ ११७५ भूत्वा चत्वारीति द्वादश २७ । १२ अष्टाविंशतिकानि शरीरपर्याप्तौ निरतिशयसमुद्धात केवलिनः द्विविहायोगतिषट् संस्थानकृतानि द्वादश । मनुष्ये संज्ञिनि च प्रत्येकं सुभगादेययशस्कीर्ति विहायोगतियुग्मषट्संस्थानषट्संहननकृतानि षट्सप्तत्यग्रपंचशती भूत्वा द्वापंचाशदकादशशती । द्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिषु द्वे द्वे भूत्वाष्टी । देवाहार कनारकानापानपर्याता वेकैकं भूत्वा श्रीणीति पंचसप्तत्यग्रेकादशशती २८ I ११७५ हुए। बादर- अप् प्रत्येकके दो दो भंग होनेसे चार हुए। इस तरह सत्ताईसके स्थान में १ + ३+४+ ४ = १२ बारह भंग होते हैं। अठाईसके स्थान में शरीर पर्याप्तिकालमें निरतिशय समुद्घात केवलीके विहायोगति युगल और छह संस्थानके बदलने से बारह भंग होते हैं। मनुष्य और संज्ञी तियंच में सुभग, २० आदेय, यशःकीर्ति और विहायोगति युगल, छह संस्थान, छह संहनन द्वारा प्रत्येकके पाँच सौ छिहत्तर भंग होने से दोनोंके ग्यारह सौ बावन हुए । दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञीमें यशःकीर्तिके युगलसे दो-दो भंग होनेसे आठ हुए । देव नारकी आहार कमें श्वासोच्छ्वास पर्याप्तिकाल में एक-एक भंग होनेसे तीन हुए । इस प्रकार अठाईसके स्थान में १२ + ११५२ + ८ + ३ = ११७५ ग्यारह सौ पचहत्तर भंग होते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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