SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 320
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ९४८ गो० कर्मकाण्डे प्रत्येकबादरंगळोळ, २४ पृथ्व्यप्तेजोवायुसूक्ष्मंगळोळ साधारणवनस्पतिवादरसूलमंगलोळमेकैकभंगंगळप्पुरिंदनारु २४ लब्ध्यपर्याप्तकजीवंगळोळ पन्नो दु २४ कूडि चतुविशतिप्रकृतिस्थानदोळ सप्तविंशति भंगंगळप्पुवु २४ पंचविंशति स्थानदोळ, देवाहारकनारकरुगळ शरीरमिश्रकाळदोळ प्रत्येकमेकैकभंगंगळप्पुरिदं मूरु २५ पृथ्व्यप्तेजोवायुप्रत्येकवनस्पतिगळ शरीर. ५ पर्याप्तियोळ बादरंगळोळ रडरडु भंगंगळप्पुरिद पत्तु २५ मत्तं पृथ्व्यप्तेजोवायुगळ सूक्ष्मंगळ शरीरपर्याप्तियोळं साधारणवनस्पतिबादर सूक्ष्मंगळ शरीरपर्याप्तियोळमेकैकभंगंगळप्पुदरिंदमारु २५ कूडि पंचविंशतिस्थानदोळ भगंगळकानविंशतिप्रमितंगळप्पुवु २५ षड्विशतिस्थानदोळ होंद्रियत्रोंद्रियचतुरिद्रियासंज्ञिजीवंगळ शरीरमिश्रकालदोछ प्रत्येकमेरडेरडु भंगंगळप्पुरिव नाल्क रोळुमेंटु २६ संजिपंचेंद्रियदोळं मनुष्यनोळं शरीरमिश्रकालवोळु प्रत्येकं षट् संहनन षट्संस्थान१० सुभगादेवयशस्कोतियुग्मत्रयकृत भंगंगळु ३६ । ८। इन्नूरे भत्ते टागुतं विरळेरडरोळ मैनूरप्पत्तार चतुर्विंशतिकानि पर्याप्तानां शरीरमिश्रकाले बादरपृथ्व्यप्तेजोवायुप्रत्येकेषु द्वे द्वे भूत्वा दश । सूक्ष्मपृथ्व्यप्ते जोवायुषभयसाधारणयोश्चैकैकं भूत्वा षट् । लब्ध्यपर्याप्तेष्वेकादशेति सप्तविंशतिः २४ । २७ पंचविंशतिकानि देवाहारकनारकाणां शरीरमिश्रकाले एक भूत्वा त्रीणि, शरीरपर्याप्तो बादरपृथ्व्यप्तेजोवायुप्रत्येकानां द्वे द्वे भूत्वा दश । सूक्ष्मपृथ्व्यप्तेजोवायूनामुभयसाधारणयोश्चकैकं भूत्वा षडित्येकान१५ विंशतिः २५ । षड्विंशतिकानि शरीरमिश्रकाले द्वित्रिचतुरिन्द्रियासंजिनां द्वे द्वे भत्वाष्टो। संज्ञिनि मनुष्ये च प्रत्येक षट्संहननषट्संस्थानसुभगादेययशस्कीतियुग्मकृताष्टाशीत्याद्विशती भूत्वा षट्सप्तत्यग्रपंचशती, अतीर्थसमुद्घात अब चौबीसके स्थानमें भंग कहते हैं-चौबीसका उदय मिश्रकालमें है सो बादर, पृथ्वी, अप, तेज, वायु, प्रत्येक इन पांच में यशःकीर्तिके युगलसे दो-दो भंग होनेसे दस हुए । २० सूक्ष्म पृथ्वी अप तेज वायु बादर सूक्ष्म साधारण इनमें एक-एक भंग होनेसे छह हुए । ग्यारह लब्ध्यपर्याप्तकोंके शरीर मिश्रकालमें एक-एक भंग होनेसे ग्यारह हुए। इस प्रकार चौबीसके स्थानमें १०+६+ ११ = सत्ताईस भंग होते हैं। पच्चीसके स्थान में देव, आहारक नारकीके एक-एक भंग होनेसे तीन हुए। शरीर पर्याप्तिमें बादर, पृथ्वी, अप् , तेज, वायु, सूक्ष्म बादर साधारणके एक-एक भंग होनेसे छह ... हुए । इस प्रकार पच्चीसके स्थानमें ३+१०+६= उन्नीस भंग होते हैं । छब्बीसके स्थानमें शरीर मिश्रकालमें दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञीके यशःकीति के युगलसे दो-दो भंग होनेसे आठ हुए। संज्ञी तिथंच और मनुष्योंमें छह संहनन, छह संस्थान, सुभग, आदेय, यशःकीर्तिके युगल द्वारा दो सौ अठासी, दो सौ अठासी भंग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy